म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ - 16 जुलाई 2013 को अम्बेडकर मैदान में संविदा कर्मचारी देगें धरना







16 को अम्बेडकर मैदान में संविदा कर्मचारी देगें धरना

सरकार शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मीयों, गुरूजियों को नियमित कर सकती है तो संविदा कर्मचारियों को क्यों नही


भोपाल आज दिनांक 14 जुलाई 2013 ! म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ ने 16 जुलाई 2013 को विधान सभा घेराव का ऐलान किया था लेकिन अब विधान सभा अनिचित काल के स्थगित हो गई है । इसलिए म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ 16 जुलाई 2013 को संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए राजधानी भोपाल स्थित अम्बेडकर पार्क में एक दिवसीय धरना देगा । म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बताया कि म.प्र. सरकार ने शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों और गुरूजियों को नियमित कर दिया । शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, गुरूजियों की नियुक्ति ग्राम के सरंपचों और ग्राम समुदाय के द्वारा की गई थी, जो कि विधिवत नहीं थी । इनको वेतन तथा मानदेय केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से मिलता था , ऐसे शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, और गुरूजियों को सरकार ने नियमित कर दिया लेकिन जो संविदा कर्मचारी विधिवत परीक्षा, चयन प्रक्रिया, साक्षात्कार के माध्यम से विभागों और उनकी परियोजनाओं में कार्य कर रहे हैं , सरकार उनको नियमित नहीं कर रही है । यह सरकार का सौतेला व्यवहार है । जिससे 2 लाख संविदा कर्मचारियों में आक्रोष है ।


संविदा कर्मचारियों की पीड़ा यह है किं:
(1) सौतेला व्यवहार:- म.प्र. शासन ने शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, और गुरूजियों जिनकी नियुक्ति सरंपचों और ग्राम समुदायों ने मानदेय आधार की थी । शासन ग्राम पंचायतों को शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों और गुरूजियों को मानदेय देने के लिए अनुदान देती थी, शासन को भी ये अनुदान केन्द्र सरकार  देती थी । ऐसे शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, और गुरूजियों को म.प्र. सरकार ने मंत्री परिषद की बैठक में पदों का निर्माण कर नियमित कर दिया, नियमितीकरण के बाद भी इनको केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से वेतन और भत्ते दिये जा रहे हैं, लेकिन जो संविदा कर्मचारी विधिवत सक्षम नियुक्ति प्रक्रिया और चयन प्रक्रिया के माध्यम से आएं है, और योजनाओं और परियोजनाओं में लगे हैं, ऐसे संविदा कर्मचारियों को सरकार नियमित नहीं कर रही है । जिस तरह से शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, गुरूजियों को सरकार ने नियमित कर दिया है, तथा नियमितीकरण के पश्चात उनको वेतन केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से ही प्राप्त हो रहा है , वैसे ही संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाए, और वेतन भत्ते परियोजनाओं के बजट से ही दिया जाए , जिससे सरकार पर वित्तीय भार भी नहीं आयेगा । 

(2) काम नियमित कर्मचारी से ज्यादा और वेतन आधा:- संविदा कर्मचारी नियमित कर्मचारियों से ज्यादा काम कर रहे हैं, वेतन देने की बात आती है तो नियमित कर्मचारियों से आधा दिया जाता है, संविदा कर्मचारियों को वेतनवृद्वि, समय पर मंहगाई भत्ता, चिकित्सा भत्ता, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, चिकित्सा अवकाश, मकान किराया भत्ता नहीं दिया जाता ।

(3) संविदा बढ़ाने के लिए देना पड़ता है एक माह का वेतनः- संविदा कर्मचारियों को हर साल अपनी संविदा बढ़वाने के लिए संविदा बढ़ाने वाली कमेटी सदस्यों और सक्षम अधिकारियों को एक माह तक का वेेतन देना पड़ता है । जिलों में संविदा बढ़ाने का अधिकार कलेक्टर और सी.ई.ओ के पास रहता है, इसलिए विभागीय अधिकारी संविदा बढ़ाने के लिए कलेक्टर और सी.ई.ओं के नाम पर पैसा वसूलते हैं ।  

(4)  पैसा भले ही लैप्स हो जाए पर वेतन और भत्ते नहीं दिये जाते:- केन्द्रीय प्रवर्तित योजनाओं में कर्मचारियों के वेतन और भत्ते की राशि केन्द्र सरकार देती हैं वर्ष के अंत में हजारो करोड़ रूपये लैप्स हो जाता है लेकिन कर्मचारियों को समय पर मंहगाई भत्ता, चिकित्सा भत्ता, मकान किराया भत्ता, चिकित्सा अवकाश नहीं दिया जाता ।

(5) नियमित करने से सरकार पर वित्तीय भार नहीं उसके बाद भी नियमित नहीं कर रही सरकार:- विभागों में संचालित परियोजनाएं दस - पन्द्रह वर्षो से चल रही हैं संविदा कर्मचारियों को कार्य करते हुये 10 से 15 वर्ष हो गये हैं वेतन और भत्तो की राशि केन्द्र सरकार दे रही है, और ये योजनाएं आगामी दस से पन्द्रह वर्ष और चलनी हैं, संविदा कर्मचारियों की औसत आयु 40 से पैतालीस वर्ष के बीच में है, जब तक योजनाएं चलती रहेंगी तब तक संविदा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जायेगा इसलिए म.प्र. शासन पर वित्तीय भार भी नहीं आयेगा । 

(6) संविदा कर्मचारी मर जाए तो चंदा करके उसकी अन्त्येष्टीकरते हैं:- यदि किसी संविदा कर्मचारी की मृत्यु हो जाए, या कोई गंभीर दुर्घटना हो जाए तो, संविदा कर्मचारी चंदा करके उसकी अन्तेष्टी करवाते व गंभीर दुर्घटना में घायल होने पर उसका इलाज चंदा करके करवाते हैं ।

(7) संविदा कर्मचारियों को हटाते वक्त नेर्सिगिक न्याय सिद्वांत का पालन नहीं:- संविदा कर्मचारियों को जब चाहे तब हटा दिया जाता है । संविदा कर्मचारियों को संविदा की धमकी देकर उल्टे सीधे काम करवाये जाते हैं, जब जांच होती है तो सारा दोष संविदा कर्मचारी पर मढ़ कर संविदा से हटा दिया जाता है, नियमित कर्मचारी खुद बच जाते, हटाने के पहले संविदा कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर भी नहीं दिया जाता । संविदा कर्मचारी सीधे बर्खास्त और नियमित कर्मचारी निलंबित होते हैं, जांच के समय सेटिंग करके बच जाते हैं, लेकिन संविदा कर्मचारी को सीधे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है, कोई जांच या अपना पक्ष रखने का अधिकार नहीं दिया जाता । जैसे अंग्रेजों के शासन के रोलेक्ट कानून बनाया गया था जिसमें भारतीयों को अंग्रेज बिना अपना पक्ष रखे जेल में डाले देते थे, और जमानत भी नहीं होती थी ।    

(8) अधिकारी नियमित करना नहीं चाहते जनप्रतिनिधियों को चिंता नहीं:- संविदा कर्मचारी नियमित हो जायेगें तो अधिकारियों की गुलामी कौन करेगा इसलिए अधिकारी संविदा कर्मचारियों को नियमित करना नहीं चाहते, और जनप्रतिनिधि जिनको जनता चुनकर भेजती है उन्हें संविदा कर्मचारियों की चिंता नहीं । अधिकारी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को अपने हिसाब से समझाते रहते हैं, क्योंकि जन - प्रतिनिधियों के आस - पास यही लोग रहते हैं ।

(9) पदोन्नती, समयमान वेतनमान नहीं:- जिस पद पर भर्ती हुये उन्हीं पदों पर दस से पन्द्रह वर्ष काम करते हुये हो जाते हैं पदोन्नती नहीं  समयमान वेतनमान नहीं जो संविदा कर्मचारी पन्द्रह सालों से काम कर रहा है और जिस संविदा कर्मचारी की नियुक्ति आज हुई है उसको भी वही वेतन और जो पन्द्रह साल पहले निुयक्त हुआ था उसको भी वही वेतन दिया जाता है।















 

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