लेखक - रवीश चैहान, बीजेपी मध्यप्रदेश महामंत्री, किसान मोर्चा

किसान की बरकत, दोगुनी आय दिवास्वप्न नहीं,मोदी की प्रतिबद्धता



कृषि भारत की संस्कृति और सामाजिक सरोकार रहा है। ‘‘सांई इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाये, मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाये’’ इसमें बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की सात्विक भावना समाहित है। लेकिन भौतिक विज्ञान के प्रभाव ने खेती की प्राथमिकता दोयम कर दी। खेती हाषिये पर चली गयी। रही-सही कसर खेती की बढ़ती लागत ने पूरी कर दी। रासायनिक खाद से उत्पादकता वृद्धि की चाहत ने जहां खेती को मंहगा बना दिया है, वहीं उत्पादकता वृद्धि के लालच में रासायसनिक खाद ने भूमि को बंजर बना दिया। मां की सेहत पीली पड़ जाती है, तो उसका असर सन्तति पर पड़ता है। बच्चा स्वस्थ्य कैसे रह सकता है। केन्द्र में सरकारें आयी, किसानों की समस्याएं सियासी मुद्दा बन गयी और चुनाव आते ही फौरी राहत देकर सियासी दलों ने किसानों को वोट बैंक बना दिया। नतीजा सामने है कि 45 प्रतिशत किसान वैकल्पिक व्यवसाय मिलने की दशा में किसानी से तौबा करने को तैयार है, खेती से पलायन की उनकी नियति बन चुकी है। 

16वीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी ने अच्छे दिन आने का वादा किया और 20-22 माह के कार्यकाल में किसान की आय 2022 तक दोगुनी करनें का महत्वाकांक्षी मिन घोषित कर दिया। ऐसे में जहां दे में खेती की विकास दर कहीं जीरों तो कहीं 0.5 प्रतित है, किसान की आय दोगुना करने का लक्ष्य बहुतों को असंभव लगता है। क्योंकि इसके लिए खेती की विकास दर न्यूनतम दहाई में 10 प्रतित पहुंचाना पड़ेगी। नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को कांग्रेस तो हवा-हवाई बताकर नहीं थकती, जबकि आलोचक दो कारण बताकर इसे अर्द्धसत्य बता रहे है। उनका मानना है कि 0.5 प्रतिषत से कृषि विकास दर 10 प्रतित पहुंचाना और किसानों को समर्थन मूल्य में पर्याप्त वृद्धि करना असंभव है तो आमदनी दोगुनी जमीन पर कैसे हो सकती है। समर्थन मूल्य में मोदी सरकार द्वारा वृद्धि भी अधिकतम 4 प्रतिषत हुई है। लेकिन जिस तरह नरेन्द्र मोदी सरकार ने ताना-बाना बुना है, अर्द्धसत्य पूर्ण सत्य में ही बदलेगा और दुनिया आश्चर्यचकित रह जाने वाली है।

केन्द्र सरकार ने बजट में घोषणा की है कि खेती दे की अधूरी पड़ी सिंचाई योजनाएं टाईम फ्रेम में पूरी होगी। 86 हजार करोड़ रू. इसके लिए रखा गया है। काम किस गति से आरंभ हुआ है, बताने के लिए इतना पर्याप्त है कि अधूरी पड़ी 23 सिंचाई परियोजनाओं पर जिस तेजी से काम शुरू हुआ है, मार्च 2017 तक ये पूरी जो जायेगी। जिससे 80 लाख हेक्टेयर धरती पर नई सिंचाई क्षमता बढ़ जायेगी। फिलहाल दे का 47 प्रतित काष्त का रकबा सिंचाई के अधीन है। 53 प्रतित रकबा के लिए किसान बादलों पर टकटकी लगाये रहते है। यह स्थिति बदलने जा रही है, जिससे सूखा पड़ने पर किसान मायूस नहीं होगा। यही कारण है कि दे में आज सूखा की स्थिति के बावजूद कृषि उत्पादन बढ़ने का अनुमान कृषि विज्ञानी बता रहे है। मोदी सरकार गिरते भूजल से चिंतित है। उसने मनरेगा को सिंचाई कार्यों से जोड़ा है। 5 लाख खेत तालाब बनाकर (रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग की जा रही है) मनरेगा में 38 हजार करोड़ रू. का प्रावधान किया जाना केन्द्र सरकार के संकल्प की गवाही देता है। 

कई दकों से किसान रासायनिक खाद से खेतों को पूर रहे है, जिससे उर्वरा शक्ति में असंतुलन पैदा हो गया है, उर्वरा शक्ति क्षीण हो गयी है। अलबत्ता, किसान की लागत में दोगुना वृद्धि होने से मौसम की त्रासदी कोढ़ में खाज सिद्ध हो रही है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने राज्यों को स्वाईल टेस्टिंग के जरिये स्वाईल हेल्थ कार्ड किसानों को तकसीम करनें के लिए वित्तीय मदद दी है। आने वाले दिनों में हर काष्तकार अपनी जमीन का हेल्थ कार्ड देखकर ही न्यूनतम रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर सकेगा, जिससे भूमि को खुराक मिलेगी और उत्पादन सुनिश्चित होगा। जहां तक समर्थन मूल्य में प्रचुर वृद्धि का सवाल है उसे सामाजिक सरोकार से जोड़ा जाता है कि यदि एकदम एमएसपी ऊंची हो गयी तो उपभोक्ता को मार्केट में गांठ ढ़ीली करना पड़ेगी, जिससे मुद्रास्फीति का स्तर बढ़ेगा। दूसरी बात यह है कि एमएसपी पढ़े-लिखे किसानों के लिए है। प्रदेश के सुदूरवर्ती गांव में आज भी लोग समर्थन मूल्य नहीं समझते। फसल पकते ही बाजार में फसल उतार दी जाती है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदे, पचिम बंगाल जैसे राज्यों में किसान समर्थन मूल्य से ज्यादा सरोकार ही नहीं रखते, क्योंकि उन्हें जागरूक ही नहीं बनाया गया है। इसलिए समर्थन मूल्य की उत्पादन वृद्धि में भूमिका नगण्य ही कही जायेगी। अलबत्ता, मध्यप्रदे जैसे प्रगतिशील राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने समर्थन मूल्य पर बोनस देकर और ई-उपार्जन की पद्धति विकसित कर न केवल लोक शिक्षण का कार्य किया अपितु उत्पादन वृद्धि में किसानों में स्पर्धा जगा दी। यही कारण है कि मध्यप्रदे में कृषि उत्पादन का दे दुनिया में कीर्तिमान बना। चैथी बार मध्यप्रदे को कृषि कर्मण सम्मान हासिल हुआ। मुख्यमंत्री और किसानों की विश्वव्यापी सराहना हुई। किसी राज्य में कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि की मध्यप्रदेश मिसाल बना। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 2022 तक किसान की आय दोगुनी करना न तो थोथा दावा और न दिवास्वप्न है, और न थोथेबाजी है। नरेन्द्र मोदी ने कई मिथक तोड़े है। किसान की आय दोगुना करना अपवाद नहीं होगा। अलबत्ता, अर्द्धसत्य को पूरी हकीकत में बदलने में राज्यों की सरकारों को केन्द्र के साथ कदम मिलाना है। किसानों को सुविधाओं का लाभ लेना है। दे में सिंचाई का रकबा जो 47 प्रतित पर सिमट गया है, उसे 90 प्रतित लाने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों में पूरक बनना है। मध्यप्रदे में ही आजादी के बाद से 2003 तक सिंचाई का रकबा 7 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया था, इसे शिवराज सिंह चैहान सरकार ने 10 वर्षों में 35 लाख हेक्टेयर करके करिश्मा कर दिखाया है। प्रदेष में हर गांव में विपुल उत्पादन किसानों की मेहनत और सरकार की मदद की गवाही देतो है।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नरेन्द्र मोदी सरकार की प्राथमिकता गांव, गरीब और किसान है। सारी विकास योजनाएं गांव और किसान के इर्द-गिर्द घूमती है। हाल में हुए सर्वेक्षण में पता चला है कि लाखों करोड़ रू. का कृषि उत्पादन हाट की सुविधाओं के अभाव में हर साल साग, सब्जी-भाजी, फल-फूल, जिन्सों के रूप में सड़ गल जाता है। किसान लागत मूल्य से भी वंचित रह जाते है। कभी-कभी तो गांव, खेड़ों की सड़कें प्याज, टमाटर, आलू से पट जाती थी। इस कमी को पूरा करनें के लिए केन्द्र सरकार ने ई-ट्रेडिंग करनें के लिए देश की 500 से अधिक कृषि उपज मंडियों को ई-ट्रेडिंग से जोड़ दिया है। इसका विधिवत उद्घाटन 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वंय करनें की घोषणा कर किसानों को अपना उत्पाद दे की किसी भी मंडियों में आॅनलाईन बेचने की सुविधा प्रदान कर दी है। हर्ष का विषय है कि मध्यप्रदे में भोपाल की करोंद मंडी 14 अप्रैल से देभर की मंडियों से जुड़ गयी है। पूरा दे किसानों के लिए विपणन केन्द्र बन चुका है। इससे मध्यप्रदे का आलू, टमाटर, पपीता, संतरा, सरबती गेहूं, बासमती चावल और अन्य उत्पाद दूरदराज प्रदेशो में बेचे जाने से किसान की गांठ में पैसा आयेगा। किसान की आमदनी में बरकत होगी। किसान को प्रौद्योगिकी का कमाल कुतुहल का विषय बनेगा।

नरेन्द्र मोदी परंपरागत चाय के विक्रता रहे है, लेकिन उन्होनें कृषि के अर्थशास्त्र को समझाकर खेती की आय दोगुनी करनें के लिए एक सूत्र दिया है। काष्त जमीन को तीन भागों में विभाजित कर एक तिहायी पर विपुल उत्पादन लिया जाये। दूसरे भाग पर कृषि उद्यान, मधुमक्खी पालन, इमारती लकड़ी लगाकर पूरक आय की जाये। तीसरे भाग में पशुधन, मुर्गीपालन, मतस्यपालन का ताना-बाना बुना जाये। जब कृषि और कृषक तीन स्तंभों पर आधारित होगा, परस्पर सहयोग और समन्वय से बरकत होगी। सरकार ने कृषि लागत को घटाने, जैविक खेती को प्रोत्साहन देने और साख व्यवस्था में सस्ता ब्याज, प्रमाणित बीज, नीम कोटेड यूरिया जैसी व्यवस्था की है। खरीफ और रबी के मौसम में यूरिया की अफीम की तरह कालाबाजारी होती थी। बीस माह मं नरेन्द्र मोदी सरकार ने करिश्मा कर दिया, जिससे यूरिया का प्रचुर भंडार राज्यों में पहुंच रहा है और खाद कारखाने खाद उठाने वालों को दावत दे रहे है। बात ठीक है, गुन न हिरानो, गुना गाहक हिरानों है। देरआयत दुरूस्त आयत दिन फिरे है। किसान की आय दोगुना होगी और घर-घर खेत खलिहान में समृद्धि दस्तक देगी। सब्र का फल मीठा होता है। डाॅ. मनमोहन सिंह कहते थे मंहगायी थमने के लिए जादू की छड़ी नहीं है। लेकिन वहीं कांग्रेस अब जानबूझकर अच्छे दिनों का स्वागत करनें के बजाय अडंगा लगाकर समय चक्र को गलत दिशा देना चाहते है, जो नहीं हो सकता। आजादी के पूर्व जो सपना स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों ने देखा था, पूरा होने का वक्त आ चुका है। -  

लेखक - रवीश चैहान, बीजेपी मध्यप्रदेश  महामंत्री, किसान मोर्चा






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