बड़ी मात्रा में असलाह पहुंचा छत्तीसगढ, नक्सलियों नें रॉकेट लांचरों की 22 खेप भेजी रायपुर

बड़ी मात्रा में असलाह पहुंचा छत्तीसगढ


नक्सलियों नें रॉकेट लांचरों की 22 खेप भेजी रायपुर
रायपुर। दो दशकों से ज्यादा समय से नक्सलवाद की समस्या से निपट रहे छत्तीगढ़ अंचल में आने वाले समय में नक्सली समस्या एक बार फिर सर उठा सकती है। नक्सलियों की सेंट्रल टेक्निकल कमेटी के सचिव सदानला रामकृष्णा उर्फ टेक्नी अन्ना ने नए खुलासे किए हैं। अब तक पुलिस यह मान रही थी कि कोलकाता से रॉकेट लांचरों की दो ही खेप छत्तीसगढ़ आई है। लेकिन कई दौर में घंटों चली पूछताछ में टेक्नी अन्ना ने बताया है कि दो साल के अंदर उसने 22 खेप सामान रायपुर भेजा। इसमें रॉकेट लांचर व अन्य हथियारों के हिस्से भी थे। नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ को वेपन टेस्टिंग लैब के रूप में तैयार कर लिया है। देश के अलग-अलग स्थानों से आने वाले हथियारों का परीक्षण यहीं हो रहा है।
60 साल का टेक्नी अन्ना नक्सलियों के शीर्ष नेताओं में गिना जाता है। सेंट्रल कमेटी के इस सदस्य के जिम्मे नक्सलियों के लिए हथियारों के निर्माण, सुधार और दूसरे देशों से हथियारों का इंतजाम करना था। उसके नेतृत्व में नक्सलियों ने अगले दो सालों के अंदर सेना या किसी सरकारी संगठन की तरह अपनी रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग (आरएंडडी)खड़ी करने की योजना बनाई थी। कोलकाता में गिरफ्तारी के बाद सदानला से राष्ट्रीय  जांच एजेंसी (एनआईए), आईबी समेत कई राज्यों की पुलिस ने पूछताछ की। इसमें कोलकाता और मुंबई से राज्य में हो रही हथियारों की सप्लाई का पूरा नेटवर्क सामने आया है। सदानला ने 23 पेज के अपने बयान में कहा है कि इस साल जनवरी और फरवरी में आठ खेप रायपुर भेजी गई। नक्सलियों ने पुलिस की नजर से बचने के लिए एक फर्जी कंपनी दुर्गा टेक्निकल सर्विस बना ली थी। इसके माध्यम से रॉकेट लांचर, क्लेमोर माइंस, वूवी ट्रैप जैसे हथियारों के कई हिस्से भेजे गए। पुलिस ने सप्लाई होने के पहले कुछ खेप पॉल ट्रांसपोर्ट कंपनी के गोदाम में पकड़ लीं। बाकी सामान अंदर पहुंच चुका है।
हथियारों और विस्फोटकों के परिवहन का सारा काम किसी प्रभाकर नामक नक्सली के हाथों में था। सदानला ने बताया कि अगर वह गिरफ्तार नहीं होता तो और 40 लाख का माल तैयार करके भेजने की तैयारी हो चुकी थी। रॉकेट लांचर, खास तरह के विस्फोटक, बारूदी सुरंगों और हथियारों को तैयार करने के लिए रामकृष्णा ने कोलकाता के अलावा मुंबई में भी अपने साथियों के माध्यम से कारखाने खोल लिए थे। मुंबई का कारखाना 65 साल के असीम भट्टाचार्य के हवाले था जो नक्सलियों के एक बड़े नेता का सगा भाई है।
गौरतलब है कि 14 अप्रैल 2011 से 18 अगस्त 2011-हथियार, एम्युनिशन और विस्फोटकों की करीब 14 खेप दंडकारण्य जोनल कमेटी (एसजेडसी) के पास भेजी। इसके अलावा 7,13 और 16 फरवरी 2012- प्रीती रोड लाइंस से चार बार रायपुर भेजा गया। 23 जनवरी व 11-12-15 फरवरी-पॉल ट्रांसपोर्ट से लकड़ी की पेटियों में बंद हथियारों के हिस्से और बाकी सामान चार ट्रकों में रायपुर भेजा गया।
सदानला ने स्वीकार किया है कि देसी रॉकेट लांचर तैयार करने का उसे जुनून था। वर्ष 2007 में पहली बार रॉकेट लांचर की सटीक डिजाइन उसने तैयार की। अबूझमाड़ के जंगलों में इसका काफी दिनों तक परीक्षण चला। इन रॉकेट लांचरों को कई राज्यों में भेजा गया ताकि उनकी मारक क्षमता का परीक्षण किया जा सके। आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले के दुर्गीपुति थाने समेत कई जगह नक्सलियों ने इनका इस्तेमाल किया। 50 फीसदी से कुछ ज्यादा रॉकेट निशाने पर लगे। सदानला ने कहा कि ये रॉकेट अब 90 फीसदी सही निशाना लगाने की स्थिति में हैं।
रॉकेट लांचर के प्रोजेक्ट के लिए नक्सलियों के पास पैसे की भी कमी नहीं थी। सदानला रामकृष्णा को 25 जून 2011 से लेकर 21 फरवरी 12 के बीच चार किस्तों में 1.65 करोड़ रुपए मिले थे। कोलकाता में छापे के दौरान भी नक्सलियों के कोलकाता और मुंबई के ठिकानों से 60 लाख रुपए से ज्यादा रकम मिली।  
साभार यह लेख हमे विश्व संवाद केंद्र द्वारा भेजा गया है 

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