अटल किसान पंचायत अन्नदाता की खुशहाली की गली

अटल किसान पंचायत अन्नदाता की खुशहाली की गली

विश्व पटल पर लोकतंत्र की अवधारणा जितनी पुरानी है उससे कदाचित अधिक पुरातन भारत में व्याप्त पंच परमेष्वर की मान्यता है। यह सीधे-सीधे भारत के साहित्य और संस्कृति में समाहित है। जनमत, नृपमत, साधुमत को द्वापर में लोकतंत्र के रूप में मान्यता मिली। तब सबसे बड़ी पंचायत चित्रकूट में हुई जिसमें अयोध्या का सिहांसन संभालने और श्री राम को लोकहित में अपना पौरूष दिखाकर राम राज्य की स्थापना करने की सम्मति मिली थी। आगे चलकर जो पंचायत हुई उसकी अवमानना का दुष्परिणाम कौरवों को सर्वसत्यानाष के रूप में भुगतना पड़ा। पिछले दिनों संसद का जब बजट सत्र हुआ उसमें मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों ने महंगायी के चक्र में फंसी जनता को राहत दिलाने की पुरजोर मांग की। महंगायी पर देश  में बहस की न तो वह शुरूआत थी और न अंत था। वह तो जनभावना को अनसुना करने का कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का अंतहीन सिलसिला था। सत्रावसान के अगले दिन ही केन्द्र सरकार ने ईंधन के मूल्यों में वृद्धिकर महंगायी बढ़ाने में आग में घी डालने का काम किया। किसानों की बढ़ती लागत का मुद्दा सत्र में छाया रहा। कोई सान्त्वना देने की बात तो दूर रही केन्द्र सरकार ने खरीफ में तत्काल जरूरी डीएपी खाद के दामों में तीन गुना 555 रू. से बढ़ाकर दाम 1250 रू. के ऊपर पहुंचा दिये। एनपीके के मूल्य 437 रूपये बोरी से 1182 रू. एमपीओ के दाम 267 रू. से 890 रू. बढ़ा दिये गये। किसान पर टूटते पहाड़ की चीख पुकार बहरी सरकार ने नहीं सुनी तो 15 जून को मध्यप्रदेश में किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने विरोध स्वरूप 24 घंटा का उपवास रखा। भारतीय जनता पार्टी के युवा प्रदेश  अध्यक्ष प्रभात झा के नेतृत्व में सभी संगाठनात्मक 55 जिलों में 4 लाख कार्यकर्ता उपवास पर बैठे और केन्द्र सरकार की किसान विरोधी निरंकुष नीतियों का सड़क से संसद तक आक्रामक विरोध करने की घोषणा कर दी गयी।
अन्नदाता किसान भारतीय संस्कृति का ध्वज वाहक है। किसानी सिर्फ आजीविका नहीं लोकधर्म है। खेती श्रम के साथ पुनीत साधना है। पर्यावरण चक्र में संतुलन लाने की प्रक्रिया है। किसान के प्रति कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की बेरूखी का विरोध नकारात्मक राजनीति पर होती तो उपवास स्थल पर ही किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज पर फसल कर्ज देने की घोषणा करके सीमित वित्तीय साधनों के बावजूद राज्यसरकार पर पौने पांच सो करोड़ रूपयों को बोझ नहीं लादते। प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों, राजनैतिक दल प्रमुखो, को पत्र लिखाकर शिवराज सिंह चैहान ने किसान संघर्ष में शामिल किया। शिवराज सिंह चैहान ने अपनी शक्ति से किसानों को हौसला बनाये रखने का साहस दिया तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने केन्द्र सरकार की किसान विरोधी निर्मम राजनीति के खिलाफ अटल किसान महापंचायत बुलाकर संघर्ष का शंखनाद कर दिया। किसान महापंचायत में अखिल भारतीय प्रतिनिधित्व होने से अब यह संघर्ष किसान नीति और केन्द्र की किसानों के प्रति अनीति का प्रतीक बन चुका है। इसके क्या निहितार्थ होंगे और खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा यह काल के गर्भ में है। किसानों की अस्मिता, कृषि के अस्तित्व के लिये इस संघर्ष को अटल किसान महापंचायत ने ऐसा मंच दिया है जो सर्वोदयी राजनीति का पैगाम बन गया है। मध्यप्रदेश में जुलाई का महिना खरीफ की बोनी का ठीक टाइम होता है। बारिश अपने यौवन पर पहुंचती है। श्रावण का महिना साधना का संदेश देता है। ऐसी विकट व्यस्तता में अकेले मध्यप्रदेश के कोने-कोने से 2 लाख 12 हजार किसानों की महापंचायत में भाग लेने की आतुरता बताती है कि आगाज अच्छा है। 4 लाख तक किसान पंचायत के साक्षी बन सकते हैं। अंजाम भी खेती की खुशहाली, विपुलता और समृद्धि की राह ही बनायेगी।
मध्यप्रदेश में किसानों को जन्मजात ऋण ग्रस्तता से ठोस राहत और मुक्ति देने के 8 वर्षों में जो प्रयास हुए हैं वे भारतीय कृषि को नवजीवन, नई
संजीवनी सिद्ध हो रहे हैं और इस मुक्ति अभियान ने देश में चैपाल चर्चा का रूप ले लिया है। तत्कालीन एनडीए सरकार किसानों की बदहाली के प्रति संवेदनशील रही है। केन्द्र में सत्ता में आने के बाद से ही अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों के हित में सूद कम करने, किसान के्रडिट कार्ड देकर किसान का सम्मान बढ़ाने की पहल आरंभ कर दी थी।
उसने डाॅ. स्वामीनाथन आयोग बनाकर उसे काम सौपा था। आयोग ने अपना जो प्रतिवेदन दिया है 5 वर्षों से ठंडे बस्ते में डाल दिया है। उसमें किसान को लागत पर पचास प्रतिशत लाभांष तय करने को कहा है संक्षेप में गेहॅू की लागत यदि 1200 रूपये क्विंटल बैठती है तो 600 रूपये लाभांश जोड़कर 1800 रू. समर्थन खरीदी मूल्य देने की अनुशंसा की है। इसके ऐवज में जब यूपीए सरकार ने 1285 रू. क्विंटल समर्थन मूल्य तय किया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने 100 रू. क्विंटल बोनस देकर मध्यप्रदेश के किसानों को उल्लेखनीय प्रोत्साहन दिया है। बढ़े हुए बिजली के दामों की खजाने से भरपाई की। किसानों के लिये कृषि केबिनेट का गठन कर दिया और अलग से कृषि बजट की चर्चा भी आरंभ कर दी है। कृषक कल्याण योजना में तीन करोड़ रू. दिये। कृषि तकनालाजी और प्रौद्योगिकी लघुसीमान्त किसानों के खेतों तक पहुंचाने के लिये कृषि यंत्र दूत योजना, 850 कस्टम हायरिग केन्द्रों की स्थापना की है। प्रदेश में जैविक कृषि नीति लागू की गयी। भूजल संवर्धन साथ ही जल सरक्षण के लिये बलराम तालाब योजना को लोकप्रिय बना दिया है। प्रदेश के गांवों को कृषि कार्य हेतु 8 घंटा गुणवत्तापूर्ण निर्वाध बिजली और घरेलु कार्यों के लिये 24 घंटा बिजली पूर्ति के लिये फीडर विभक्तिकरण का कार्य 2012 दिसम्बर तक पूर्ण किया जा रहा है। किसानोन्मुखी नीतियाॅ केवल नारा नहीं हकीकत में बदल चुकी है। कृषि पर मिलने वाले अनुदान और सरकार के बीच अब कोई बिचैलिया नहीं रह गया है। सीधे किसान के खाते में जमा होने लगी है। कृषि यंत्रों की खरीद पर मिलने वाली सब्सीडी भी शर्त मुक्त है। जिसे जो यंत्र मुक्त बाजार से खरीदना हो खरीदे अनुदान उसके खाते में जमा हो जायेगा।
एक सर्वेक्षण ने यह बताकर कि देष का 40 प्रतिशत किसान बढ़ती लागत, केन्द्र की उदासीनता और किसान विरोधी नीतियों से तंग आकर पलायन करने की सोच रहा है। मध्यप्रदेश सरकार नये प्रोत्साहन के साथ किसानों के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। इससे जहाँ युवा वर्ग में कृषि और पूरक व्यवसायों के प्रति चाव बढ़ा है, वहीं परम्परागत किसानों के पूरक आय के स्त्रोत खुल रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने नये कृषि विश्वविद्यालय की ग्वालियर और पशु चिकित्सा विज्ञान
विश्व विद्यालय की स्थापना जबलपुर में कर दी है। कृषि विज्ञान और पशु चिकित्सा विज्ञान के नये क्षितिज मध्यप्रदेश में खुल रहे हैं। साथ ही टीकमगढ़ और गंजबासोदा में कृषि महाविद्यालय और रीवा में पशु चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना की जा चुकी है। कृषि की उन्नत तकनीक अब वायु तरंगों पर उपलब्ध हैं। इसके लिये सिरोंज में कम्यूनिटी रेडियों सेंटर ने काम आरंभ कर दिया है। विकास खंडों में कृषि ज्ञान केन्द्र की स्थापना ने कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़कर किसान के घर तक कृषि तकनालाजी और प्रौद्योगिकी को पहुंचा दिया है। आजादी के बाद खेती के उपेक्षित क्षेत्र में जितना काम जन सहयोग से राज्य सरकार ने आठ वर्षों में किया है वह पांच दशकों में नहीं हुआ यह अतिष्योक्ति नहीं वास्तविकता है। किसान महापंचायत मध्यप्रदेश में कृषि के बढ़ते चरण का दिग्दर्शन कराने का एक मौका भी होगा जिससे अन्य प्रदेश अर्जित होंगे। अटल किसान महापंचायत की सफलता उसके किसान की खुशहाली का आंदोलन बनने में है। देश के तमाम किसान संगठनों ने इसमें भागीदारी करने, प्रदेशो के मुख्य मंत्रियों ने किसानों के रचनात्मक अजेंडा में अपनी रजामंदी देकर इसका दायरा विस्तृत कर दिया है।
अटल किसान महापंचायत ने देश के चालीस करोड़ किसानों से अपना सरोकार जोड़ लिया है। इसकी सफलता महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के किसानों के घावों पर मरहम का काम करेगी। पंजाब, हरियाणा, जैसे उन्नत राज्यों में किसानी के घाटे का सौदा बनने के पहले रोग के प्रतिरोध का रास्ता खुलेगा। आवशकता है कि कृषि की प्रोद्योगिकी को किसान की पहुंच के भीतर रखकर बढ़ती लागत से परेशान अन्नदाता को राहत का शीतल स्पर्ष दिया जाये।    
क्षणभंगुर कहे जाने वाले इस संसार में घटनाएं इतिहास बन जाती हैं। व्यक्ति की आकुलता जन-जागरण का संदेश बन जाती हैं। व्यक्ति के पीछे कारवां जुटता चला जाता है। 16 जून 2012 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के प्रतीकात्मक उपवास का समापन करने जमा हुए प्रदेश के हजारों किसानों से रूबरू होकर प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने सलाह मशविरा किया। उसी दिन से मध्यप्रदेश के 50 हजार गांवों की चैपाल पर किसान जागरण उत्सव बन गया। किसान हस्तिनापुर नहीं मांग रहे हैं। किसानों की अपेक्षा है कि देश में कृषि का प्रथक बजट बने, कृषि की राष्ट्रीय नीति हो, खाद की नीति हो, कंपनियां मूल्य वसूलने में निरंकुश नहीं रहें। किसानों को गुजरे जमाने की नील की खेती जैसा विवष नहीं किया जाये। ईस्ट इंडियाकंपनी के किये का हश्र दो सौ साल भुगता है। लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पायी।  किसानी के काम आने वाले उत्पादों की मूल्य वृद्धि वापस ली जाये। कृषि औजार, ट्रेकटर , हारवेस्टर, खाद उत्पादन का काम कृषि सहकारिता के अंचल में लाया जाये। अन्नदाता किसान समाज को देता है। उसे याचक नहीं बना जाये। किसान के कृषि  उत्पादन के लागत मूल्य में 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था हो। प्राकृतिक आपदा की दशा में प्रति हेक्टर क्षतिपूर्ति इस तरह निर्धारित हो कि किसान कृषि व्यवसाय में खड़ा रह सके। प्रभात झा कहते हैं हंगामा करना मेरा मकसद नहीं।
किसानों की हालात सुधरना चाहिए, 15 जुलाई को आयोजित अटल किसान महापंचायत में देश की 70 प्रतिशत आबादी के आर्थिक सामाजिक हित और सांस्कृतिक चिन्तन समाहित हैं। इसे राजनैतिक कवायत कह कर किसानों की भावना को लांछित करना उचित नहीं होगा।
आकाष कुसुम नहीं चाहते
आजादी की लड़ाई में किसानों को सब्जबाग दिखाया गया था। लेकिन आर्थिक उदारीकरण की आड़ में उन्हें छला जा रहा है। किसान केन्द्र सरकार से आकाश कुसुम नहीं मांग रहे हैं। किसान अपेक्षा करते है कि किसान के उत्पाद के मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया में किसान की भागीदारी बने। कृषि मूल्य लागत आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाये जो उसे दायित्व के साथ गांभीर्य भी प्रदान करेगा। किसान को बाजारी शक्तियों के रहमोंकरम पर न छोड़ा जाये। लागत मूल्य पर 50 प्रतिषत बोनस दिया जाये। मध्यप्रदेश की तरह देश के किसानों को ब्याजमुक्त कर्ज मिले। प्राकृतिक आपदाओं के समय 25 हजार रू. हेक्टर मुआवजा दिया जाये। मध्यप्रदेश ने अग्रणी पहल करके 11 हजार रूपये तक मुआवजा अपने खजाने से देने की व्यवस्था कर दी है। कृषि उत्पाद आपात निर्यात को फसल चक्र से जोड़कर बिचैलियों की भूमिका समाप्त की जाये। पष्चिमी दुनिया में भी किसानों का सब्सीडी दी जा रही है। लेकिन विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में भारत में सब्सीडी पर कैची नहीं चलायी जा रही है। अटल किसान महापंचायत के लिये किसानों की इन मांगों पर सहमति कमोवेश बन चुकी है। कृष्ण के नेतृत्व में हुई पंचायत में न्याय धर्म की मांग सिर्फ पांच गांव तक सीमित थी। राजधर्म से विमुख कौरवों की असहमति ने ही महाभारत की परिणति कर दी थी। केन्द्र सरकार अटल किसान महापंचायत के निहितार्थ को समझ कर गंभीरतापूर्वक पहल करें यही समय का तकाजा है। 
साभार विष्व संवाद केन्द्र (नोटः यह लेख हमे हमारे इेमेलः hindustanvichar@yahoo.in पर भेजा गया था)।
  HINDUSTAN VICHAR  
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