टुकड़े टुकड़े में रामसेतु को तोड़ रही है सरकार

 जिस रामसेतु को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की गई थी, ऐसा लगता है कि उसी कानूनी लड़ाई के जरिए केन्द्र सरकार टुकड़े टुकड़े में रामसेतु को तोड़ रही है। अब केन्द्र सरकार के सालिसिटर जनरल ने अदालत को सूचित किया है कि सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए जो वैकल्पिक रास्ता सुझाया जा रहा है वह व्यावहारिक नहीं है। केन्द्र सरकार ने यह बात आरके पचैरी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी के हवाले से कही है और यह भी कहा है कि यह कमेटी की रिपोर्ट है जिस पर अभी केन्द्र सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है।
भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल रोहिन्गटन नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि इस परियोजना के संबंध में मशहूर पर्यावरणविद आर के पचैरी ने रिपोर्ट तैयार की है उसके अनुसार अगर प्रस्तावित मार्ग को बदला जाता है तो यह आर्थिक और पर्यावरण के अनुकूल नहीं होगा। आरके पचैरी की पर्यावरण संबंधी नीतियों को लेकर उनपर पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि वे पर्यावरण के हित से ज्यादा निजी हित की चिंता करते हैं। इसलिए अगर सरकार आर के पचैरी की किसी रिपोर्ट का हवाला सुप्रीम कोर्ट को दे रही है तो इतना स्पष्ट हो जाता है कि सरकार टुकड़े टुकड़े में रामसेतु को तोड़ रही है।
इससे पहले अप्रैल में केन्द्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि वह रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने में असमर्थ है। उल्टे केन्द्र सरकार ने इसे बेहद संवेदनशील मामला मानते हुए सुप्रीम कोर्ट से ही गुजारिश की थी कि वह इस बारे में कोई दिशा निर्देश जारी करें। अब एक बार फिर सरकार ने पचैरी की रिपोर्ट का सहारा लेकर सेतुसमुद्रम परियोजना को बचाने का रास्ता खोज निकाला है। फिलहाल अब इस मामले पर आठ हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी।
सेतुसमुद्रम परियोजना के बीच में वह सेतु आ रहा है जिसे रामसेतु कहा जा रहा है। वैज्ञानिक अध्ययनों में भी यह बात साबित हो गया है कि सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए जिस खुदाई को जरूरी बताया जा रहा है वह खुदाई जिसकी होगी वह रामसेतु है जिसे राम ने लंका जाने के लिए बनाया था। सेतु समुद्रम परियोजना की कुल लागत करीब दो हजार करोड़ है और इस परियोजना के अनुसार एक 167 किलोमीटर लंबा चैनल बनाया जाएगा ताकि नौवहन आसानी से हो सके. इसीलिए इस समुद्री क्षेत्र में 30 मीटर चैड़ा और 12 मीटर गहरी खुदाई करने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव के विरोध में जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में केस कर रखा है जिस पर सुनवाई चल रही है।
पहले सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने में असमर्थता दिखा दी और अब उसने एक पर्यावरणविद के हवाले से वैकल्पिक रास्ते को पर्यावरण के लिए खतरा बता दिया। साफ है सरकार अपने राजनीतिक समीकरणों को ठीक बनाये रखने के लिए टुकड़े टुकड़े में रामसेतु को तोड़ रही है क्योंकि जो डीएमके सेतुसमुद्रम परियोजना की वकालत कर रहा है वह डीएमके केन्द्र में यूपीए सरकार का अहम घटक दल है। डीएमके किसी भी सूरत में सेतुसमुद्रम परियोजना को पूरा करना चाहता है और केन्द्र की यूपीए सरकार किसी भी कीमत पर डीएमके को नाराज करके अपनी सरकार को कमजोर नहीं करना चाहती है। वह जानती है कि सरकार द्वारा रामसेतु का पक्ष लेने के बाद डीएमके नाराज होगा, इसलिए रामसेतु टूटे तो टूटे पर सरकार अपने ऊपर टूट का खतरा नहीं आने देना चाहती।
साभार संवाद मंथन  (
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