संसद में हंगामा: भाजपा का अलोकतांत्रिक चेहरा

संसद में हंगामा: भाजपा का अलोकतांत्रिक चेहरा 

- सुरेश पचैरी

    संसद का मानसून-सत्र बगैर किसी पर्याप्त कामकाज के अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। भारतीय संसद से यह अपेक्षा की जाती है कि वहां पर विचार-विमर्श और चर्चा के जरिए समस्याओं का हल खोजा जाए। भाजपा कोल ब्लाॅक आवंटन पर सीएजी रिपोर्ट पर संसद में चर्चा के बजाए चैराहों पर, अखबारों में, टेलीविजन चैनल पर चर्चा करती रही। अच्छा तो यह होता कि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर संसद में व्यापक बहस कराती, जिससे इस मामले से जुड़े सारे वास्तविक तथ्य देश के सामने आते। सच्चाई यह है कि यदि कोयला आवंटन संबंधी सीएजी की रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होती तो भाजपा की बड़ी फज़ीहत होती और उसकी असलियत सामने आ जाती।
    असलियत यह है कि 2005 में भाजपा के मुख्यमंत्रियों वसुंधरा राजे और रमन सिंह तथा कुछ अन्य गैर-कांग्रेसी राज्यों जैसे उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने प्राईवेट कंपनियों एवं सरकारी उपक्रमों को कोयला ब्लाॅक के आवंटन की पद्धति में नीलामी की प्रक्रिया का लिखित में विरोध किया था। असलियत यह है कि सीएजी ने भाजपा की छत्तीसगढ़ सरकार पर प्रतिकूल टिप्पणी की है कि उसने शासकीय उपक्रम मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन के लिए जो भटगांव कोल ब्लाॅक लिया था, उसे अजय संचेती (जो भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के करीबी हैं) को बहुत ही कम भाव पर बगैर समुचित प्रक्रिया के दे दिया। इससे छत्तीसगढ़ सरकार को लगभग 1058 करोड़ रु. की हानि हुई। क्या भाजपा सीएजी की इस रिपोर्ट पर अपने मुख्यमंत्री रमन सिंह से त्याग-पत्र लेगी? मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने भी रिलायंस के पावर प्लांट के लिए अतिरिक्त कोल ब्लाॅक आवंटन का पत्र प्रधानमंत्री को लिखा। क्या किसी व्यापारिक घराने के लिए इस प्रकार की पैरवी उचित है?
इससे पहले कि कोल ब्लाॅक आवंटन संबंधी सीएजी रिपोर्ट की तह में जाएं हमें निजी कंपनियों के लिए अलग-अलग सरकारों के समय अपनाई गई कोल ब्लाॅक आवंटन नीतियों पर सिलसिलेवार नजर दौड़ानी पड़ेगी:-
ऽ    कांग्रेस सरकार ने 1993 से 1996 के बीच निजी कंपनियों को बिजली, स्टील व सीमेंट के उत्पादन के लिए खनन की अनुमति दी।
ऽ    एनडीए शासनकाल में 1998 से 2004 के बीच निजी क्षेत्र की 19 कंपनियों तथा सरकारी क्षेत्र को 18 कोल ब्लाॅक बगैर पारदर्षिता के मनमाने ढंग से दिए गए।
ऽ    यूपीए सरकार ने 2004 के बाद कोल ब्लाॅक आवंटन की पारदर्षी प्रक्रिया शुरू की। साथ ही, निजी कंपनियों के लिए कोल ब्लाॅक आवंटन पर प्रतिस्पर्धी बोली का फैसला किया, जिसका विरोध तत्कालीन एनडीए राज्य सरकारों झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उड़ीसा ने लिखित में किया। इन्होंने यह विरोध तब तक किया, जब तक इन्हें केंद्र सरकार से आष्वासन नहीं मिला कि सारी रायल्टी राज्य सरकारों को दी जाएगी।
यूपीए सरकार ने प्रतिस्पर्धी बोली की नीति को अपनाने का फैसला नवंबर, 2007 में लिया तथा विधि विभाग की सलाह के अनुसार यूपीए-1 द्वारा 17 अक्तूबर, 2008 को एमएमडीआर एक्ट में संशोधन का अधिनियम संसद में पेश किया, जो अगस्त, 2010 में पारित हुआ।
यह स्पष्ट करना जरूरी है कि यूपीए कार्यकाल में कोयला आवंटन की एक निश्चित प्रक्रिया लागू की गई, जिसमें कोयला, बिजली तथा इस्पात मंत्रालयों के केन्द्र सरकार के अधिकारी, संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रतिनिधि और कोयला उत्पादन करने वाले राज्यों के प्रमुख सचिव की एक समिति बनाई गई। कोल ब्लाॅक आवंटन की प्रक्रिया के विज्ञापन के बाद आवेदकों को उच्च अधिकारियों द्वारा साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। राज्य सरकारों द्वारा आवेदक कंपनियों को दिए गए लीज एग्रीमेंट की जांच की गई। इसी समिति ने पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर निजी क्षेत्र को 68 कोल ब्लाॅक 2004 से 2008 के बीच आवंटित किए। अगर इन आवंटनों में किसी भी प्रकार की अनयमितताएं थी तो किसी भी राज्य ने इस बाबत अभी तक शिकायत क्यों नहीं की?
ज्ञातव्य है कि यूपीए-2 के कार्यकाल में 2009-12 के बीच कोई कोल ब्लाॅक आवंटित नहीं किए गए। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र को किसी भी स्तर पर खनिज कोयले को खुले बाजार में लाभ के लिए बेचने की अनुमति नहीं दी गई है।
 भाजपा यह अनावश्यक प्रश्न उठा रही है कि जब नई नीति बनाई जा रही थी तब नए कोल ब्लाॅक आवंटित क्यों किए गए? 2008 से पूर्व निजी क्षेत्र को किए गए आवंटन बिजली, स्टील और सीमेंट की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए जरूरी थे। अर्थव्यवस्था की जरूरतों तथा इन वर्षो में लगातार सकल घरेलू उत्पाद (ळक्च्) की दर बनाए रखने के लिए भी इस प्रकार का निर्णय राष्ट्रहित में लेना उचित था।
    जहां तक सीएजी रिपोर्ट का प्रष्न है, इसमें एनडीए के कार्यकाल के दौरान कोयला आबंटन के आॅडिट का जिक्र नहीं है। अतः यह रिपोर्ट एकतरफा है। साथ ही, सीएजी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि एनडीए के कार्यकाल में कोयला ब्लाॅक आवंटन में कोई स्पष्ट प्रणाली नहीं थी। सीएजी रिपोर्ट में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि सरकार को 1.86 लाख करोड़ रु. का नुकसान हुआ है। इस रिपोर्ट में तो केवल यह कहा गया है कि अगले 35 सालों में निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रु. का लाभ हो सकता है।
    सीएजी रिपोर्ट में कहीं भी प्रधानमंत्री पर अंगुली नहीं उठाई गई है। कोल आवंटन पर सीएजी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी की गई है। जैसे सीएजी को संबंधित कोयला विभाग के साथ विचार-विमर्श के बाद ही आंकड़े तय करने थे, जो नहीं किया गया।
    यह अजीब-सी बात है कि सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देकर प्रधानमंत्री से भाजपा इस्तीफा मांगकर नई नजीर बना रही है जबकि इस रिपोर्ट में उन्हें कहीं जिम्मेदार नहीं माना गया है। नियम यह है कि सीएजी की रिपोर्ट पर संज्ञान संसद की लोकलेखा समिति को लेना होता है और यदि यह समिति कोई रिपोर्ट देती है तो उस पर संसद में चर्चा होने के बाद सरकार उस पर आवष्यक कार्रवाई करती है। संसद में चर्चा न कर भाजपा ने संसदीय लोकतंत्र व गरिमा को ठेस पहुंचाई है, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस को बदनाम करने की साजिश की है। संसद के ठप्प होने से अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी। कई महत्वपूर्ण लंबित विधेयक पारित न होने से राष्ट्रीय हित प्रभावित हुए हंै।
    भाजपा सभी 142 कोल ब्लाॅकों के आवंटन रद्द करने की बात कर रही है जिसमें 67 सरकारी क्षेत्र के ब्लाॅक है और 75 निजी क्षेत्र को दिए गए हैं। बगैर जांच किए सारे 142 कोल आवंटन रद्द करने से देश की अर्थव्यवस्था की साख गिरेगी और कोयला, स्टील और सीमेंट के क्षेत्रों को संकट का सामना करना पड़ेगा। भाजपा को यदि कोई शिकायत है तो कोल आवंटन के मामलों की जांच कर रहे इंटर मिनिस्टिरियल ग्रुप के सामने वह षिकायत कर जांच की मांग कर सकती है। वहीं दूसरी ओर, सीबीआई भी पूरे मामले की जांच-पड़ताल कर रही है।
    भाजपा के लोग कांग्रेस पर सीएजी के बारे में टिप्पणी की बात करते वक्त यह भूल जाते है कि पूर्व में भाजपा नेताओं ने एनडीए के शासनकाल में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट पर चर्चा के समय सीएजी के बारे में क्या कहा था? सेंटूर होटल विनिवेश मामले में प्रस्तुत सीएजी रिपोर्ट के समय भाजपा के तत्कालीन मंत्री श्री अरूण शौरी ने सीएजी को ‘मूर्खतापूर्ण’ कहा था। इसी प्रकार 2001 में जब कफन घोटाले के मामले पर सीएजी की रिपोर्ट का मामला सदन में उठा, तब उस समय के कानून मंत्री श्री अरूण जेटली ने कहा कि ’’सीएजी ने सुनी सुनाई बातों पर काम किया है, तथ्यों पर नहीं। ’’ संसद में हो रहे हंगामे पर कड़ा एतराज जाहिर करते हुए श्री जेटली ने यह भी कहा था कि हंगामें की बजाय सदन में चर्चा जरूरी है। परंतु इस मानसून-सत्र में भाजपा ने संसद में कार्यवाही ठप्प की और कोई कामकाज नहीं होने दिया। यह भाजपा की दोमुंही नीति व राजनीतिक अवसरवादिता है।
भाजपा को देश को इस बात का जबाव देना होगा कि कोल आवंटन के मामले पर संसद के अंदर उसने चर्चा क्यों नहीं की? बात बिलकुल साफ है, भाजपा एक ओर मनगढ़ंत आरोप लगाकर कांग्रेस और केन्द्र की यूपीए सरकार को बदनाम कर रही है, वहीं दूसरी ओर अपनी राज्य सरकारांे की निजी कंपनियों के लिए की गई सिफारिषों पर पर्दा डालने की कोषिष कर रही है।
(लेखक भारत सरकार में केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे हैं)



नोट- यह लेख हिन्दुस्तान विचार के ईमेल पर प्राप्त हुआ है, इस लेख मे लेखक के स्वंय के विचार है


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