खत्म करो ये भ्रष्टाचार, लागू करो सखत लोकपाल

ऐसा तो शायद ७३ वर्षीय समाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे ने भी कभी नही सोचा होगा की उन्हें ऐसा देशव्यापी जन समर्थन मिलेगा जो भारत के इतिहास मे अभी तक शायद ही किसी नेता को मिला हो नौ दिनो के आमरण अनशन  पर बैठे गाँधीवादी नेता अण्णा हजारे ने 9 अप्रैल को जैसे ही जंतर-मंतर पर अपना अपशन तोड़ा तब उन्हे मिले देशव्यापी समर्थन से यह तो स्पष्ट हो गया की भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की जनता मे कितना आक्रोश है पूरे भारत के 450 शहरो मे भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनी  ने भारत की सरकार को इस समाजिक कार्यकर्ता के सामने घुटने टेकने को विवश होना पड़ा और देश की जनता के सामने यह साफ हो गया की महज यह एक चुनावी राजनिति नही हैं। अण्णा हजारे का कहना है कि अगर 15 अगस्त तक लोकपाल विधेयक नही बना तो तिरंगा फिर उनके कंधो पर होगा। अण्णा हजारे चाहते है की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की अगुआई ऐसे लोग करे जो किसी राजनैतिक पार्टी से न हो जिनके चरित्र साफ हो अण्णा हजारे के अनशन तोड़ने के बाद वकील और समाजिक कार्यकर्ता प्रशांत  भूषण ने कहा की लोकपाल विधेयक मे सरकारी अधिकारियो सहित सभी राजनैतिज्ञो जो शसकीय पदो पर आसीत् है लोकपाल विधेयक के दायरे मे लाना चाहिए अब प्रत्यक्ष लोकतंत्र का समय आ गया है आवश्यकता  है ऐसे सख्त लोकपाल विधेयक की जिससे भारत मे भ्रष्टाचार समाप्त हो सके अण्णा हजारे और उनके साथी मानते है आमूलचूल सांस्थानिक परिवर्तन ही देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकता है इससे भारत को ऐसे क्षेत्रो मे बाँटा जाये जिसमे केवल 3000 मतदाता होगे मतदाता क्षेत्र सभा का गठन करेगे नागरिक सेवाओ जिसमे सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल आदि शमिल का पूरा प्रशसनिक कंट्रोल क्षेत्र सभा के पास होगा इसमे सबसे महत्वपूर्ण है कि क्षेत्रसभा के पास शसकीय अधिकारियो को दंड देने का अधिकार भी होगा और इसके अलावा उनके पास इनकी नियुक्ति और बरखास्तगी जैसे अधिकार भी होगे। निर्वाचित प्रतिनिधियो को वापिस बुलाने का अधिकार इस प्रत्यक्ष लोकतंत्र का दूसरा चरण होगा इससे देश की यह फायदा होगा की अगर निवार्यित प्रतिनिधि सही कार्य नही कर रहे है तो जनता को ये अधिकार मिल जायेगा की वे जन प्रतिनिधि को उसकी निवार्चित अविधि से पूर्व वापिस बुलवा ले इसका प्रत्यक्ष दवाब जनप्रतिनिधियो पर भी पड़ेगा और वे देश के विकास के लिए लगातार कार्यशील  बने रहेगे वैसे तो भारत मे यह विचार अच्छा लग रहा है। 1992 मे पंचायती राज पर संविधान संषोधन विधेेयक परित होने के बाद भी देश मे प्रत्यक्ष लोकतंत्र नही आया वैसे अण्णा हजारे के साथ भारत की जनता ने जैसे अपनी ताकत और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुटता का प्रदर्शन  किया है उससे राजनैतिक हल्को मे तो हलचल मच ही गई है ब्लकि कई राजनैतिज्ञो ने इसकी आलोचना भी शरू  कर दी है जिसका कारण केवल इतना समझ आता है कि अधिकतर राजनेता राजनिति को भी अपनी कमाई का साधन बनाये बैठे है और इसमे भी वंशवाद साफ दिखाई देता है पिता के बाद उसके उत्तराधिकारी के रुप मे पुत्र या पुत्री उसी राजनैतिक दल मे असानी से पद पा जा जाते है अब भारत मे ऐसा समय आ गया है की पूरा देश इस भ्रष्टाचार से  परेशान  आ चुका है इसलिए सख्त लोकपाल विधेयक एक स्वागत योग्य कार्य होगा।

अजय धीर     

स्वंतत्र पत्रकार  











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