किसानो को फसलो का लागत मूल्य मिलना चाहिए - शिवकुमार शर्मा

शिवकुमार शर्मा


अध्यक्ष भारतीय किसान संघ शिवकुमार शर्मा से हिन्दुस्तान विचार के संपादक गीत धीर का साक्षात्कार

विगत दिनो भोपाल में पालिटेक्निक काॅलेज चैराहे पर भारतीय किसान संघ के धरने प्रदर्षन ने न केवल मध्यप्रदेश  की सराकार को हिला कर रख दिया ब्लकि राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था को भी अस्त व्यस्त कर मध्यप्रदेश  पुलिस के खुफिया तंत्र को भी नकारा साबित कर दिया। क्यों उग्र हैं मध्यप्रदेश के किसान क्या मुख्य माँगे हैं प्रदेश सरकार से उनकी कैसे रुकेगा प्रदेश  में किसानो का षोषण ?   इससे इतने परेषान हो गये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान कि उन्होंने भी 13 फरवरी को किसानो के हित में धरना और उपवास की घोषणा तक कर डाली इसी संबध में प्रस्तुत हैं भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा  से हिन्दुस्तान विचार के संपादक गीत धीर का साक्षात्कार।

प्रशन- आपके जीवन परिचय के संबध में कुछ बताईये ?

उत्तर- मेरा जन्म मध्यप्रदेश के होशगाबाद जिले के ग्राम मे किसान परिवार में हुआ कृषि ही हमारे परिवार का पैतृक व्यवसाय हैं किसानो का षोषण और किसानो की पीड़ा बचपन से ही मुझे परेषान करती थी गाँव में प्राथमिक शिक्षा   प्राप्त करने के बाद मैं जबलपुर चला गया जबलपुर के पास स्थित ग्राम पाटन मे मैंने 22-23 वर्ष की आयु से ही किसानो को इकटठा कर किसान हित मे कार्य करना प्रांरम्भ किया विष्वविघालय मे मैं छात्र राजनिति में सक्रिय रहा और विष्वविघालय मे कई जगहो से चुनाव लड़े 11 वर्ष तक छात्र राजनिति मे सक्रिय रहा इसी दौरान होस्टलो मे ग्रामीण क्षेत्रो के किसान परिवारो होषंगाबाद, नरसिंहपुर, मंडला, डिडौरी से जो छात्र पढ़ने आते थे उनसे मुझे   विशेष   स्नेह और अपनापन महसूस होता था क्योंकि मैं बचपन से ही किसानो की पीड़ा और षोषण देखता आया था वर्ष 1972 मे मैं लोकनायक जयप्रकाश के मूवमेंट से जुड़ा और काफी सक्रिय रहा आंदोलनो मे सक्रिय भाग लेते हुए मैंने लगभग 32-33 बार तिहाड़ जेल, पटना जेल, सेन्ट्रल जेल आदि जेल यात्राँए भी की इसी दौरान हमारे साथ पढ़ते जेल में बंद हमारे सिनियर नेता श्री शरद यादव को इन्ही धरने आंदोलन के चलते सरकार को छोड़ना पड़ा था इन सबके चलते प्रशसन मे भी मेरी छवि कुछ ऐसी बन गई थी की जब भी कोई धरना, आंदोलन होता उसे हम चाहे कोई लेना देना हो अथवा नही हमे गिरफतार कर लिया जाता और स्थिति सामान्य होने के बाद ही हमें छोड़ा जाता उस समय प्रशसन यह मानने लगा था की जब तक ये दो तीन लोग बाहर रहेगे तब तक स्थिति सामान्य नही बन पायेगी। मैने बी.एस.सी,  एम.ए.एल.एल.बी तक शिक्षा प्राप्त की फिर मैं किसानो और निर्धन वर्गाे के हित के लिए वकालत की प्रैक्ट्रिस करने लगा और उन्हें मुफत कानूनी सहायता उपलब्ध करवाने लगा मैने बस्तर के आदिवासी, निर्धन और कमजोर वर्गाे के लिए भी बस्तर मे सात वर्ष तक कार्य किया मैने सुप्रीम कोर्ट मे भी प्रैक्ट्रिस की फिर मैं भोपाल आ गया उच्च न्यायालय के विधिक सेवा प्रधिकरण मे विघि अधिकारी के रुप मे भी मैने कमजोर और निर्धन वर्गो को मुफत कानूनी सहायता उपलब्ध करवाई यह सब करने के बाद भी बाद भी मुझे देश मे किसान का किसानो का षोषण और पीड़ा लगातार परेशन करती रही मैं आत्मसंतुष्टी महसूस नही करता था मुझे यह देख घुटन सी महसूस होती की देश मे अलग अलग दल केवल वोट बैंक और निजि स्वार्थाे के लिए किसानो का मोर्चा बनाकर उनका उपयोग कर रहे हैं तब मैने विचार किया की एक ऐसे आर्गेनाइजेशन का निर्माण करुगा जो केवल किसानो संघ कैसा हो और क्या हो मैने विचार किया कि यह अराजनैतिक हो किसानो का हित सर्वाेपरि हो और अराजनैतिक बेस बनाकर केवल किसानो के हितो को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ना चाहिए मुझे ऐसा लगा की किसान संघ की विचारधारा मेरे विचारो से मेल खाती हैं किसान संघ के लोगो की कथनी और करनी मे मुझे अंतर दिखाई नही दिया इसलिए मैने भारतीय किसान संघ के लिए कार्य किया पहले मै संभाग फिर प्रांत की कार्यकारणी का सदस्य फिर 6 साल तक प्रदेष का महामंत्री और विगत एक वर्ष से प्रदेष के भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष का दायित्व संभाल रहा हूँ।

प्रशन- क्या आप किसानो के हित के लिए किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थन करेगे ?

उत्तर- कभी नही, इसके पीछे कारण यह हैं कि पिछले 64 वर्षो में किसी भी पार्टी ने किसानो के बारे मे ईमानदारी से विचार नही किया केवल वोट बैंक के लिए चुनावो के समय किसानो के हितो की बात करते हैं। फसलो का लागत मूल्य न मिल पाने के कारण आज कृषि लाभ का धंधा नही हैं और किसान आत्महत्या तक कर रहे हैं। पिछले 64 वर्षो मे हर वस्तु के दाम 250 से 300 गुना तक बढ़ गये है जबकि गेहूँ के दाम केवल 30 गुना ही बढ़े है किसान घाटे की खेती कर रहा हैं हम कभी किसी पार्टी का समर्थन नही करेगे जिस दिन हम किसी पार्टी का समर्थन कर देगे उस दिन भारतीय किसान संघ का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

प्रशन-  मध्यप्रदेश में जो किसानो की आत्म हत्या का सिलसिला चल रहा है उसे रोकने के लिए आपने क्या प्रयास किया हैं ?

उत्तर- हम सरकार नही संस्था है एन.जी.ओ. की तरह कार्य करते है सरकार से कोई मदद या ग्रान्ट भी नही लेते भारत सरकार 50 से 100 करोड़ की ग्रान्ट दे सकती हैं लेकिन हमने अपनी मेहनत से 28 तलाब बनवाये अपने टैªक्टरो से अपने पैसो से कार्य करते हैं अपने ही पैसो से 500-500 लागो के ट्रेनिग कैम्प भी लगवाते हैं क्योंकी किसान आत्मनिर्भर हो सके और वे आत्महत्या की सोचे तक नही हमने 500-500 लोगो के साथ जल यात्राँए भी निकाली और 3000 ग्राम के लोगो को इकटठा कर महाकाल का जल अभिषेक भी किया हैं हमारे साथ 75000 किसानो ने रक्तदान किया जो एक विष्वरिकार्ड है हम किसानो के हितो के लिए कार्य कर उन्हे आत्म निर्भर बनायेगे और सरकार के भरोसे कार्य नही करेगे न ही सरकार से एक नये पैसे की मदद लेगे।

प्रशन- अभी कुछ समय पूर्व आपकें द्वारा पालिटेक्किन काॅलेज चैराहे पर जो चक्का जाम, धरना, प्रदर्षन किया गया उसके क्या परिणाम निकले हैं और कितने प्रतिशत किसान इन परिणामो से संतुष्ट हैं ?

उत्तर- इस प्रकार के आंदलनो में एक प्रतिशत लोग असमाजिक तत्व भी आ जाते है जो संघ के कार्यकर्ता है उन्हें संघ की नितियो, रितियो और पद्वति मे पूर्ण विष्वास है पूरी समझ है एंव अपने ऊपर के पदाधिकारियो पर भी पूर्ण विष्वास हैं। हम जानते थे की हमारी 183 माँगे सरकार किसी भी प्रकार पूर्ण नही कर पायेगी क्योंकी इन माँगो मे कुछ माँगे ऐसी भी थी जिन पर सरकार हमसे बात करना चाहेगी जैसे किसान कोष की स्थापना करना इस पर सरकार का सुझाव था की रिफयूजी फंड का पैसा लगभग 1200 करोड़ इसमे जमा कर देते है पर ऐसे मे इसको आपरेट कैसे करेगे? किसे देगे? कौन देगा? कब देगा? इसका सिस्टम तय करना पड़ेगा। भूमी अर्जन कानून मे संषोधन के बारे मे सरकार हमसे पूछ रही है इसमे क्या चाहते है इस पर हमारा कहना कि अन्य राज्यो जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेष, हरियाणा तीनो का जो काम्पेक्ट है उसका अनुपात हमे चाहिए। बिजली के संबध मे दस माँगे जिसमे सरकार हमारे साथ बैठना चाहती हैं। भोपाल मे हमारा अधिवेषन 4,5,6, जनवरी 2011 को था जिसमे पूरे देश से लगभग 15000 किसान और मध्यप्रदेश से लगभग 125000 किसान आये थे, हम चाहते थे की हमारी 183 माँगो मे से कम से कम 160-170 माँगे मानी जाये। सरकार का कहना था की आपकी सभी माँगे मानने लायक हैं। अब हम 5-5 कार्यकर्ताओ जो इस क्षेत्र मे एक्सपर्ट है उसकी एक समिति बना दी जिसमे अलग अलग विभाग जैसे राजस्व, मंडी, कृषि, बिजली, हार्टीकल्चर आदि विभागो के मंत्री, प्रमुख सचिव, संचालक आदि हमारे पाँच एक्सपर्ट किसानो के साथ बैठेगे और तय करेगे की इन क्षेत्रो मे किसानो की समस्याओ को कैसे हल किया जाँए और बतायेगी की हमे किसान कोष किस प्रकार आपरेट करना है। इस प्रकार हमारी अधिकांष माँगे पूर्व हो जायेगी।

प्रशन- क्या कभी आपके समक्ष ऐसे प्रकरण भी आते है जिसमे पुलिस या अन्य अधिकारियो द्वारा किसानो को परेषान किया जाता हैं ?

उत्तर- हमारा एक नारा है ‘‘हमारी किसान शक्ति जागेगी सारी समस्या भागेगी‘‘ जहँा जहँा भी किसान अब जागरुक हुआ है वहँा अब ऐसी समस्याँए नही है पूर्व से तो स्थिति यह थी कि कि किसान के सम्पर्क मे जो भी कर्मचारी या अधिकारी जैसे पटवारी, तहसीदार या थानेदार जो भी आया वह किसान के लिए मुसीबत बन जाता था और उससे कुछ न कुछ ले ही जाता था अब उल्टा रहेगा अब जो भी अधिकारी किसान के संपर्क मे आया और उसे परेशन किया तो किसान उसके लिए मुसीबत बन जायेगा इससे जहँा किसानो मे जागरुकता आयेगी वही किसानो का षोषण भी स्वतः समाप्त हो जायेगा हमारा उद्धेष्य किसानो को उनके प्रति हो रहे षोषण के विरुद्ध जागरुक करना हैं।

प्रशन- आपने अभी प्रदेश सरकार के समक्ष जो 183 माँगे रखी है क्या इसके अलावा भी केन्द्र सरकार से आपकी कुछ अपेक्षाए हैं?

उत्तर- किसानो के हित मे कार्य करने को तो बहुत कुछ है जिसके लिए 183 माँगे भी कम हैं अभी तो कम से कम 500 माँगे और है अभी तो यह फिल्म का ट्रेलर था फिल्म अभी बाकी है अभी हम राज्यपाल को एक ज्ञापन भी देने जा रहे है जिसमे मुख्य माँग किसान को उसकी फसलो का लागत मूल्य मिलना है अगर किसान को लागत मूल्य मिल जाये तो कृषि घाटे का धंधा नही रहेगा किसान लागत मूल्य आयोग का गठन 1965 मे हुआ था हमारा कहना यह है कि तब से किसानी कि वस्तुए बीज, कीटनाशक, डीजल, पेट्रोल कई सौ गुना बढ़ चुका है अब प्रति क्विटंल गेहूँ का मूल्य लगभग 3700 रुपये होना चाहिए जो पंद्रह प्रतिशत से बीस प्रतिषत मुनाफे के बाद लगभग 4500 रुपये प्रति क्विटंल पड़ता है जबकि सरकार इसे हमसे केवल 1120 रुपये प्रति क्विटंल खरीदती है इस प्रकार किसान पूरे देश को अपनी सब्सिडी से पाल रहा है इस प्रकार आज किसान को तूअर के 1800 रुपये प्रति क्विटंल मिल रहे है जबकि दाल बनाने मे 2400 प्रति क्विटंल का खर्च आता है और दिल्ली मे व्यपारी इसे 9000 रुपये क्विटंल बेचते है मतलब बीच का मुनाफा व्यपारी ले रहा है जबकि मेहनत किसान की हैं।

प्रशन- आप ग्रामीण क्षेत्रो मे किसानो के कैम्प लगवाते हैं, क्या उन्हें साक्षर करने की भी आपकी कोई योजना हैं ?

उत्तर- हस्ताक्षर करवाना साक्षर बनाना नही होता सरकार ग्रामीण क्षेत्रो मे बच्चो को तो ठीक से शिक्षा  दिलवा नही पा रही हमारा उद्धेष्य किसानो को जागरुक करना है ताकि उनका कोई बच्चा अषिक्षित न रहे।

प्रशन- समाचार पत्रो के माध्यम से आपने भी यह पढ़ा होगा की मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री किसानो के हितो के लिए 13 फरवरी 2011 को उपवास रखेगे और धरना देगे इस संबध मे आपके क्या विचार हैं ?

उत्तर यह उनका विषय है इस प्रर मैं क्या कहूँ मैने तो सभी दलो के लोगो से यह प्रार्थना की है की वोटो की राजनिति के लिए किसानो को माध्यम न बनाये यह सियासी खेल बंद करे और किसानो के हित मे कार्य करे किसानो के आत्महत्या करने की खबरे लगतार आ रही है किसानो की लाष पर राजनिति बंद होनी चाहिए किसानो के हितो मे धरना, प्रदर्षन आंदोलन किसानो का ही अधिकार   होना   चाहिए।
गीत धीर
संपादक राष्ट्रीय पत्रिका हिन्दुस्तान विचार

Comments

Popular posts from this blog

भोपाल में खुला एक ऐसा जिम जिसके संचालक खुद बॉडी बिल्डिंग की दुनिया में एक मिसाल है

Tabish Khan (President Bhopal Bodybuilding and Fitness Asssociation)