अध्यक्ष रामेश्वर शर्मा - श्रीराम कथा महोत्सव
विधिपूर्वक रखे जाएं बच्चों के नाम: प्रेमभूषणजी
भगवान की बाललीला के प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता
श्रीराम कथा महोत्सव का चतुर्थ दिवस
‘‘कर्मश्री’’ का आयोजन
भोपाल, कोलार । भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों का नामकरण विधि अनुसार अध्य्यन कर किया गया था। जिसमें जो गुण और प्रतिभा थी उनका अध्य्यन कर गुरूदेव ने शास्त्रानुसार भगवान के नाम रखे थे। जो सबसे में रमा हुआ है, सर्वव्यापी है उनका नाम ‘राम’ रखा गया। विश्व का जो भरण पोषण करते है, विष्णु स्वरूप हैं उनका नाम ‘भरत’। जिनमें संसार के सारे लक्षणधाम है उनका नाम लक्ष्मण रखा गया । जिनके नाम के स्मरण मात्र से अंतस्थः और बाह्य सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश हो जाता है उनका नाम ‘शत्रुघन’ रखा गया। हमें भी बच्चोें के नाम जैसे-तैसे नहीं रखना चाहिए अपितु विधिपूर्वक रखना चाहिए। लग्न , ग्रह, नक्षत्र के आश्रय मे ही सभी का जन्म होता है, उसी हिसाब से नाम निकलता है और नाम के हिसाब से ही गुण-दोष भी आते हैं। अतः बच्चों का नामकरण शास्त्र-विधि अनुसार होना चाहिए। उक्त सदविचार संत प्रेमभूषण जी महाराज ने कोलार के मंदाकिनी मैदान में ‘‘कर्मश्री’’ के तत्वाधान में चल रहे श्रीरामकथा महोत्सव के चतुर्थ दिवस सोमवार को हजारों श्रद्धालु-श्रोताओं के मध्य कथा करते हुए व्यक्त किए। संत श्री प्रेमभूषणजी ने इस दिन भगवान श्रीराम की शिशुलीला, बाललीला और किशोरवय लीला संबंधी प्रसंगों का मनमोहक वर्णन किया। उन्होने कहा कि भगवान की शिशु लीला, बाल लीला और किशोर वय लीला अद्भुत है, अलौकिक है। भगवान जब जन्में, अवतरित हुए तो तीनांे लोकों में आनंद हुआ था। भगवान की शिक्षा-दीक्षा संबंधी लीलाओं का उदाहरण देते हुए प्रेमभूषणजी ने कहा कि त्रेता में गुण, रूचि और प्रतिभा के आधार पर श्रीरामजी सहित चारों भाईयों की शिक्षा-दीक्षा हुई थी लेकिन आज शिक्षा की जो अव्यवस्था हमारे देश में है, वह कही दूसरी जगह नहीं है। आज प्रतिभाओं को उचित अवसर प्राप्त नही होता, बिना गुण,रूचि और प्रतिभा जाने बच्चों को विषय विशेष की शिक्षा लेने के लिए बाध्य कर दिया जाता है, इस वजह से प्रतिभाएं बिखर जाती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। जिसमें जो गुण हो, जिसमें जो संस्कार हो उस संस्कार का अध्ययन करके यदि विद्यार्थी को पढाया जाए तो वह तीव्र गति से आगे बढता है। सोमवार को कथा की आरंभ एवं पूर्ण आरती में मध्यप्रदेश शासन के जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया, कृषि राज्यमंत्री विजेंद्र प्रताप सिंह , ‘कर्मश्री’ अध्यक्ष रामेश्वर शर्मा, भाजपा प्रदेश कार्यालय मंत्री आलोक संजर, न्यायमूर्ती रमेश सोनी, मुख्य यजमान कैलाश शर्मा, पार्षद किशन सूर्यवंशी, अर्चना अरूण गोस्वामी, केदार सिंह मंडलोई, डाॅ आर.के.मिश्रा,रविंद्र यति, अमित शुक्ला, बी.एस.वाजपेई, पवन बौराना, उमाकांत दिक्षीत, मनोज कांबार, दिनेश यादव, प्रवीण मारकन, सहित वृद्धाश्रम ‘‘अपनाघर’’ में निवासरत् सभी वृद्धजन, शारदा भजन मंडल के कलाकार आदि भी शामिल हुए।
धर्म कभी वसियत नहीं बदलता
संत प्रेमभूषण जी ने कथा के दौरान कहा कि व्यक्ति को जीवन में अर्थोपाजन की योजना नहीं बनानी चाहिए अपितु धर्मोपार्जन की योजना बनानी चाहिए। कोई भी जमीन सौ साल के बाद अपना वसियत बदल लेती है लेकिन धर्म कभी अपनी वसियत नहीं बदलता है, वह जन्म जन्मांतर तक हमारे साथ चलता रहेगा। लेकिन आज परिस्थिती बडी विपरीत है, व्यक्ति धर्म के लिए नहीं अर्थ के लिए यत्न करता है, यह प्रवृत्ति बदलनी चाहिए।
जिसने लिया रामजी का नाम उसी का बेडा पार है
‘‘जिदगी बेकार है, यह दुनिया अ-सार है । जिसने लिया रामजी का नाम उसी का बेडा पार है।।’’ इस भजन के माध्यम से संत प्रेमभूषण जी ने प्रभु की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जो हम भगवान में लगा रहे हैं उतना ही हम आबाद हो रहे हैं, शेष सब निरर्थक है। लेकिन आज आदमी का चिंतन सांसारिक है, छोटा है। दो स्वभाव के लोग होते हैं। धार्मिक आयोजनों के संदर्भ में एक वह है जो कहता है कि भगवान का यज्ञ हैं, बांटो, दूसरा कहता है कि क्यों लुटा रहे हो। लेकिन आनंद प्रभु के नाम से लुटाने में ही है।
बचपन से ही साधें संस्कार
आज भी समाज में सतोगुण अधिक है, तमोगुण कम लेकिन इसके लिए संस्कारों को साधने की आवश्यकता है। जब बचपन से ही संस्कार सध गया तो आदमी तमोगुणी होगा ही क्यो। लेकिन हम इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे कि संस्कार आएंगे कहां से। संत प्रेमभूषण जी ने कहा कि बच्चा पांच वर्ष तक पालन योग्य है, पांच से बारह वर्ष तक की अवस्था कुछ शिक्षा की है, कुछ ताडन की है। बारह से अठारह वर्ष की अवस्था मित्रता और शिक्षा की है। उन्होनें कहा कि कई माताएं, नानी-दादी घर के बच्चों में भक्ति का भाव बढाने के लिए यत्न भी करतीं है, उसे भक्ति का पाठ भी पढाती है। यह भाव केवल भारतवर्ष की जननी में है। परिवार में सत्संग का वातावरण निर्माण करना चाहिए। बैठो तो सत्संग की बाते करो। सत्संग में हम जब बैठते हैं तो संस्कार आते हैं। कथा में आने से भी संस्कार आते हैं, कथा में आना चाहिए। छोटा बच्चा और वद्धावस्था समान है। कथा में बच्चे रोवें तो भी संस्कार आवेगा, वृद्ध सोवे तो भी उचित है, कथा मे आए तो। लेकिन युवाओं को पूरा सचेत होकर कथा का श्रवण करना चाहिए।
परमार्थ करने वाला ही अमर होता है
जो अपने सत्कर्मों से मरकर भी जीवित है, वह अमर है। मकान, दुकान चाहे जो भी बना लो लेकिन इससे अमर नहीं हुआ जा सकता क्योंकि यह सब हमने स्वार्थ के लिए बनाया है। यदि हम परमार्थ के लिए कुछ करतें हैं तो वह जरूर अमर हो जाता है। छोटा ही सही लेकिन परमार्थ के लिए कुछ करना ही चाहिए। रधुवंश और चंद्रवश की गाथा आज भी इसीलिए गाई जाती है क्योंकि इन्होने जो किया वह परमार्थ के लिए किया।
बचपन में चूके तो हमेशा के लिए चूके
सत्संग से संस्कारों का विकास होता है, खेल से बौद्धिक विकास होता है। विद्या अध्ययन से मानसिक विकास होता है। बचपन से ही हमें इन बातों पर ध्यान देना चाहिए। बचपन में ध्यान यदि चूक गए तो हमेशा के लिए चूक हो सकती है।
सदैव श्रेष्ठ का संग करना चाहिए
श्रेष्ठ के पास बैठने से चेतना प्राप्त होती है। सदैव श्रेष्ठ का संग करना चाहिए, निकृष्ट का संग किसी भी हाल में नहीं करना चाहिए। भगवान ने भी निकृष्ट का संग नही किया ,हमेशा श्रेष्ठ का संग किया। इसीलिए माताओं को बच्चों के साथ बैठना चाहिए, बच्चे उनके पास बैठे ना बैठें लेकिन माता को बच्चों के पास बैठना चाहिए। बहुॅंओं को सासु माॅं के पास बैठना चाहिए। जिसके आचार, विचार , व्यवहार श्रेष्ठ हो वही श्रेष्ठ है। श्रेष्ठों की संगत का लाभ उनका संग करने वालों को मिलता है।
संत प्रेमभूषणजी ने यह भी कहा:-
ऽ दान धर्म है, सत्य धर्म है, अहिंसा धर्म है, परोपकार धर्म है , वह सब धर्म है जो हमसें बन जाए। धर्म वह है जो करने वाले को प्रसन्न करे और जिसके प्रति करा जाए वह भी प्रसन्न हो।
ऽ बचपन खेलने के लिए मिला है, जिनको बचपन का सुख नहीं मिला जीवन में उससे अभागा कोई दूसरा नहीं। लेकिन आज हालात यह है कि व्यक्ति बच्चों के साथ नहीं खेलता है,अपितु कुत्तों के साथ खेलता है।
ऽ भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए चतुराई का त्याग अति आवश्यक है। भगवान भजन से कृपा करते हैं अर्थात किसी संत के कहने पर कृपा करते हैं। भगवान सबमें हैं। जिसकी जितनी जहां दृढता बन जाएगी उसे वहां भगवान के दर्शन हो जाएंगे।
ऽ जो कुंभ में पहुंच जाए उसे संसार के किसी और तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है। धरती पर पांच करोड तीर्थ हैं उनमें प्रयागराज की महिमा बडी निराली है। देवता, दैत्य, किन्नर, नर श्रेणी, ़ित्रवेणी में सब लोग आकर स्नान करते हैं।
ऽ बचपन में ही भगवान में मन लग गया तो ‘पचपन’ में ईश्वर से साक्षात्कार भी हो जाएगा।
ऽ त्रेता में प्रजा राजा को पुत्रवत प्र्रिय थी। प्रजा को जब राजा से पुत्रवत प्रेम प्राप्त होता था तब प्रजा भी राजा को पित्रवत आदर देती थी।
ऽ कथा का श्रोता वक्ता से भी श्रेष्ठ है। यह गोस्वामी जी ने लिखा है। घर परिवार को संवारकर कथा में पहुंचना और कथा में जो सुना कथा से जाकर वह घर परिवार में पहुंचाना यह श्रोता को वक्ता से श्रेष्ठ बनाता है।
ऽ प्रणाम करने वाले के पास ‘आर्शीवाद’ स्वतः चल पढता है। अतः सुबह उठकर बढों का प्रणाम करना चाहिए।
ऽ केवल भगवान के नाम का कीर्तन करो इससे जो चाहोगे वो तो होगा ही, साथ ही जो नहीं चाहोगे वो अच्छा भी हो जाएगा।
ऽ किन्नरों का आदर करना चाहिए। इनका आर्शीवाद फलता है और श्राप गला भी देता है।
ऽ श्रीरामचरितमानस सभी ग्रंथों का रस है। इसे पढकर देखिए, इसके पढने से मानस जीवन का मानस दिव्य हो जाएगा।
ऽ अंगे्रजी व्याकरण विहीन भाषा हैैं, इसमें चेतना नही हैं। हमारी चेतना हिंदी और संस्कृत में वास करती है।
कल छप्पन भोग और श्रीराम विवाह
कोलार के मंदाकिनी मैदान पर चल रहे श्रीरामकथा महोत्सव में मंगलवार को धनुषभंग, श्रीरामविवाह आदि प्रसंगों का वर्णन होगा। इस अवसर पर आकर्षक झांकी का प्रस्तुतीकरण भी होगा और भगवान को छप्पन भोग भी लगाए जाएंगे। ‘कर्मश्री’ अध्यक्ष रामेश्वर शर्मा ने सभी श्रद्धालुओं का आहवान करते हुए कहा कि भगवान को छप्पन भोग लगाने के लिए सभी माताएं-बहनें अपने घरों से विभिन्न प्रकार का शुद्ध प्रसाद बना कर लाएं और भगवान को भोग लगाकर पुण्यलाभ अर्जित करें।
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