थावरचन्द गेहलोत (बीजेपी) - खाद्य सुरक्षा बिल में अडंगे लगाना कांग्रेस की गरीब विरोधी मानसिकता का परिचय









खाद्य सुरक्षा बिल में अडंगे लगाना कांग्रेस की गरीब विरोधी मानसिकता का परिचय - थावरचन्द गेहलोत



म.प्र. के भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री एवं सांसद थावरचन्द गेहलोत ने कहा कि केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की विफल आर्थिक नीतियों के कारण महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ा है, जिसकी मार देश की गरीब जनता को झेल रही है। आजादी के 65 वर्षो में कांग्रेस ने गरीबी हटाने के बजाय कुतर्को से मापदंड बदलकर गरीबों की संख्या घटाई है। गरीबों की दुहाई देने वाली कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने संसद में मात्र 9 मिनट में खाद्य सुरक्षा बिल को छोड़कर 12 विधेयक पास कर दिए और विपक्ष के असहयोग का बहाना कर खाद्य सुरक्षा बिल पर कार्यवाही करना ही उचित नहीं समझा। गोदामों में रखे अनाज को गरीबों को बांटने के लिए बार-बार सुप्रीम कोर्ट के निर्दे के बाद भी अनाज को सड़ने दिया। ऐसी निर्लज्य यूपीए सरकार से खाद्य सुरक्षा बिल को पारित करने की उम्मीद व्यर्थ है। केन्द्र सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा बिल को पारित न किया जाना कांग्रेस की गरीब विरोधी मानसिकता का सबूत है।

उन्होंने कहा कि मध्यप्रदे के आम गरीब परिवार को 1 रू. किलो गेंहू और 2 रू. किलो चांवल तथा 1 रू. किलो आयोडीन युक्त नमक की पूर्ति आरंभ कर दी गयी है। केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून लाने का ढिंढोरा पीटा था, लेकिन खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराने का साहस नहीं किया। राज्य सरकार को इस योजना के क्रियान्वयन पर 700 करोड़ रू. का अतिरिक्त भार उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि डाॅ. मनमोहन सिंह की सरकार और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दे के गरीबों को हाशिये पर डाल दिया है। केन्द्र सरकार गरीबों के प्रति इतनी ही संवेदनशील है तो खाद्य सुरक्षा बिल को संसद में प्राथमिकता क्यों नहीं दी गयी ? उन्होनें कहा कि केन्द्र सरकार आंकड़ो से गरीबी मिटाना चाहती है। उसका एकमात्र कारण यह है कि वह अपनी आर्थिक नीतियों की विफलता को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।
 
थावरचन्द गेहलोत ने कांग्रेस की दोगली नीतियों की कड़े शब्दों में भत्र्सना करते हुए कहा कि देष में आर्थिक उदारीकरण का डींग पीटा जा रहा है। गरीबी का पैमाना तय करने में भारत सरकार के सर्वेक्षण ने ग्रामीण भारत के लिए साढ़े 22 रू. और शहरों के लिए साढ़े 26 रू. रोज कमाने वाले को गरीब नहीं माना। इसके अनुसार साढ़े पैतींस करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पाये गये। इस सर्वेक्षण के पीछे केन्द्र सरकार की मंशा अपने कार्यकाल में गरीबी कम होना बताना रहा है। क्योंकि इसके पहले गरीबों की आबादी पौने 41 करोड़ थी। सवा पांच करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के नीचे से उपर बताकर यूपीए सरकार कोरी वाहवाही लूटना चाहती है जो गलत है।










 

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