भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद प्रभात झा
राष्ट्र की अखण्डता के लिए डाॅ. मुखर्जी ने प्राणों का उत्सर्ग किया - प्रभात झा
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद प्रभात झा ने बलिदान दिवस पर आयोजित विचार संगोष्ठी में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए डाॅ. मुखर्जी के जीवन वृतान्त पर विस्तृत चर्चा की। उन्होनें चर्चा प्रारंभ करते हुए मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी को हार्दिक बधाई दी और कहा कि डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी हमारी विचारधारा के आद्य-संस्थापक के बलिदान दिवस पर व्याख्यान माला आयोजित कर कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देने का अभिनव कार्य किया है। उन्होनें डाॅ. मुखर्जी का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि बिरले ही लोग होते है जो जिन्दगी और मौत की चिंताओं से मुक्त होकर भारत माता की सेवा करते है और एक दिन मां के चरणों में स्वंय को समर्पित कर दिया। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 6 जुलाई 1901 में जन्म लेकर देश सेवा और राष्ट्रवाद की भावना का जो बीज उन्होनें बोया था वह आज 2014 में वृक्ष का रूप लेकर जनहित, जनसेवा के फल प्रदान कर रहा है। उनके जीवनकाल में काफी उतार-चढ़ाव का समय आया, जब उनका बलिदान हुआ तब उन्हें ये चिंता नहीं होगी कि ‘मेरे द्वारा देश की एकता और अखंडता को लेकर किये गये कार्यों की मात्र नींव ही रहेगी या इस पर कोई ईमारत भी खड़ी होगी’। डाॅ. मुखर्जी भारतीय इतिहास के एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिनके पिता भी कुलपति थे और अपने पिता के पदचिन्हों पर चलकर गहन अध्ययन कर कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए उन्होनें क्षेत्रीय भाषा के प्रति संवेदनशिलता दिखाई।
अंग्रेजों के शासन के दौरान पहली बार विश्वविद्यालय में गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर को दीक्षान्त समारोह में बुलाकर बंगाली भाषा उद्गार व्यक्त करने का आग्रह किया। इनके आग्रह को सहर्ष स्वीकार करते हुए गुरूदेव ने दीक्षान्त समारोह में बंगाली भाषा में संबोधन दिया। डाॅ. मुखर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन किये, उनकी भाषण श्रृंखला का हाॅवर्ड यूनिवर्सिटी ने अंगे्रजी में अनुवाद कर छात्रों में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना को जाग्रत करने का अभिनव कार्य किया। इसके पश्चात देश के तमाम् विश्वविद्यालयों में आज भी डाॅ. मुखर्जी के भाषणांे की श्रृंखला को अध्ययन कराने का कार्य किया जाता है। उन्होनें वर्ष 1934 से 1945 तक भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्य रखने के लिए अनेकोंनेक प्रयोग किये। 1939 में पश्चिम बंगाल में विधान मंडल के चुनाव संपन्न हुए, तब 250 में से 80 सीटें कांग्रेस और शेष सीटें किसान प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग को प्राप्त हुई, तब कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकार का गठन किया। इस सरकार ने पश्चिम बंगाल में अपने गलत निर्णयों से क्षेत्र की जनता के विश्वास पर कुठाराघात किया। उस समय डाॅ. मुखर्जी ने सरकार के इतिहास और भूगोल को बदलने की ठानी, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के हिन्दु नेताओं को एक कर फज़ल हक़ मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस - मुस्लिम लीग के शासन को समाप्त किया। भारत विभाजन को लेकर हुई बैठक में डाॅ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी उपस्थित थे। उन्होनें स्पष्ट शब्दों मंे ‘भारत-मां’ के विभाजन को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, कहकर बैठक का बहिशकार किया। इसके पश्चात डाॅ. मुखर्जी हिन्दु महासभा के अध्यक्ष वीर सावरकर के संपर्क में आये और देश की एकता और अखंडता के कारवां को अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा से आगे बढ़ाया।
प्रभात झा ने बलिदान दिवस पर आयोजित व्याख्यान माला को संबोधित करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने डाॅ. मुखर्जी को एक योग्य हिन्दु नेता बताया था। उन्होनें कांग्रेस में सरदार पटेल और हिन्दु महासभा में डाॅ. मुखर्जी को महान देशभक्त नेता की उपाधि से नवाजा था साथ ही इनके द्वारा किये गये राष्ट्रवाद के प्रयोग को सदैव आगे बढ़ाने का आव्हान भी कांग्रेस के नेताओं से किया था। पश्चिम बंगाल और पंजाब के बंटवारे के वक्त डाॅ. मुखर्जी ने कांग्रेस का पुरजोर विरोध किया, जिसके फलस्वरूप आज हमारे पास आधा पंजाब और आधा बंगाल सुरक्षित है। कांग्रेस ने तो मुस्लिम लीग द्वारा जीती गई बंगाल और पंजाब की सीटों को देने पर सहमति बना रखी थी। डाॅ. मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल में पड़े भयंकर अकाल का अपने नेतृत्व तले संगठन के लोगों से सफलता पूर्वक हल निकाला। गांधीजी के अनुरोध पर डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और डाॅ. भीमराव अंबेडकर को नेहरू के विरोध के चलते मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया गया। इस अवसर पर गांधी जी ने कहा था कि अच्छे व्यक्ति के संपर्क में आने से ही राष्ट्र का उत्थान संभव है। डाॅ. मुखर्जी ने 1953 में कश्मीर में प्रवेश कर कश्मीर जाने की परिमट व्यवस्था को समाप्त करने का अभिनव कार्य किया है। प्रभात झा ने बताया कि कश्मीर जाने के समय पांचजन्य के सह संपादक अटलबिहारी वाजपेयी उनके साथ थे। तब मुखर्जी ने कश्मीर में प्रवेष करने के साथ अटलबिहारी वाजपेयी से कहा कि ”Go
and Say to People of India that Mukherjee Entered in Kashmir without any
Permission” इस घटना के साथ डाॅ. मुखर्जी जी ने कश्मीर जाने की परमिट व्यवस्था को समाप्त किया। यह देखकर देश की एकता और अखंडता के लिए अटलबिहारी वाजपेयी जनसंघ में आये और डाॅ. मुखर्जी की यात्रा को आगे बढ़ाने का काम किया। अटलजी को उस समय डाॅ. मुखर्जी की प्रति छाया के रूप में देखा गया। 1953 में कश्मीर में डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के समय टाईम्स आॅफ इंडिया ने डाॅ. मुखर्जी ने श्रद्धाजंलि देते हुए लिखा कि ’भारतीय जनता पार्टी के सरदार पटेल ने देश को अलविदा कहा। देश में पहली सरकार बनने के तीन वर्ष जनसंघ की स्थापना कर देश में प्रतिपक्ष की जीवंतता को प्रारंभ किया। उनके द्वारा देखे गये सपने को भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में केन्द्र में सरकार बनाकर पूरा किया।
प्रभात झा ने बलिदान दिवस पर कार्यकर्ताओं से आव्हान किया कि पुरखों की विरासत को संभालकर उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाये। इन्द्रियों पर नियंत्रण कर मृदुभाषी बनें, अहंकार न कर कर्मठ कार्यकर्ता बन पार्टी एवं देश की सेवा करें।
इस अवसर पर विधायक गिरीश गौतम, दिव्यराज सिंह, राजेन्द्र ताम्रकार, महापौर शिवेन्द्र सिंह, अर्जुनसिंह चैहान, रमेश गर्ग, विमलेश मिश्रा सहित जिला पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे। सतना में आयोजित संगोष्ठी को सांसद वीरेन्द्र कुमार खटीक ने संबोधित किया। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह बघेल, विधायक शंकर लाल तिवारी, गगनेन्द्रप्रताप सिंह, पुष्कर सिंह तोमर सहित पदाधिकारी कार्यकर्ता उपस्थित थे।
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