मा. श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर विशेष Prabhat Jha
मा. श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर विशेष
काश! अटल जी बिस्तर से उठ जाते......
(लेखक प्रभात झा राज्यसभा सांसद, कमल संदेश के संपादक एवं मध्यप्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हैं)
जब अटलजी प्रधानमंत्री नहीं बने थे तब देश में यह बात चल पड़ी थी कि अटलजी को तो प्रधानमंत्री होना चाहिए। प्रधानमंत्री अटलजी बने, यह भावना वर्षों से देश में चली आ रही थी। भारत में कोई नेता ऐसा नहीं हुआ जिसे विपक्ष में देखते-देखते लोग भविष्य का प्रधानमंत्री मानने लगे और लोगों के दोनों हाथ ऊपर उठने लगे और यह दुआ करने लगे कि अटलजी भारत के प्रधानमंत्री बने। अटलजी भारत के मन की इच्छा थे। जब कोई विषय जन-इच्छा का रूप ले लेते हैं और जनस्वर की लहरियां वायुमंडल में गुंजित होती है तो वह विषय स्वयं में फलीभूत होने की दिशा में बढ़ने लगती है। यह अध्यात्म का सत्य है और विज्ञान का सच भी। अटलजी और उनकी कार्यप्रणाली पर देश में अनेक शोधार्थी शोध कर रहे हैं। लता मंगेशकर के कंठ और सचिन तेन्दुलकर की दोनों कलाइयों ने जिस तरह से विश्व में नाम कमाया ठीक उसी तरह अटलजी ने अपने वाणी के संस्कार से विश्व भर में अपनी छवि बनाई। वे वाणी के जादूगर हैं। उन्हें लोग दूरद्रष्टा भी मानते हैं। राजनीति में कल और उसके साथ आनेवाले सच को पहले भांप लेने की उनमें गजब क्षमता है। राजनीति में वे हिमालय की तरह अटूट खड़े रहे। बाबरी ढांचा गिरा पर उन्होंने पार्टी को नहीं गिरने दिया। सदन के भीतर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हारावजी को कहा था- ‘‘विचार तो इस बात पर भी करना होगा कि आखिर ढांचा गिराने जैसी परिस्थितियां क्यों बनी? ये परिस्थिति कैसे बनी? कौन जिम्मेदार है? मैं गलत को सही नहीं कह सकता पर मैं यह भी नहीं कह सकता कि जो कुछ हुआ उसके लिए कोई एक जिम्मेदार है।’’ अटलजी चट्टान की तरह खड़े रहे। अटलजी का यही व्यक्तित्व सड़क और संसद दोनों जगह छाया रहता था।
अटलजी नीति हैं। अटलजी सिद्धांत हैं। अटलजी रीति-रिवाज हैं। अटलजी परिवार हैं। अटलजी सोमवार से लेकर रविवार हैं। अटलजी हर राशि के दोस्त हैं। अटलजी काबा को उतने ही पसंद करते हैं जितने काशी विश्वनाथ को। अटलजी दीपक भी हैं और खिलते कमल भी। पं. नेहरू जी से लेकर मनमोहन सिंह तक को अपनी वाणी की बानगी से झकझोर देने वाले व्यक्तित्व का बिस्तर पर होना देश को असहज लग रहा है। वे राष्ट्रभक्ति के प्रतीक हैं। राष्ट्रवाद के पुरोधा हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मेघदूत हैं। वे संसदीय दल की बैठक में जब आते थे तो तालियां स्वतः बजने लगती थी। मैं भी सौभाग्यशाली हूं। वो जब तक संसद जाते रहे तब तक मुझे भी पार्टी ने संसद में भेज दिया था। अटलजी को हमने ही नहीं अनेकों ने निकट से देखा है। मुस्कुराते अटलजी के आते ही माहौल बदल जाता था। उनमें मौसम और फिजा को बदलने की ताकत थी। अटलजी संघर्ष का नाम है। अटलजी संयम का नाम है। अटलजी संगीत के सरोद हैं। अटलजी कालिदास के मेघदूत हैं। सूरदास के दोहे हैं। तुलसी की चैपाई हैं। कबीर के फकीरी के गीत हैं। उनमें मीरा जैसी कृष्णभक्ति और राष्ट्रभक्ति स्वतः देखी जा सकती है। रहीम के दोहे और भूषण की कविताएं उनको देखकर लोग स्वतः पढ़ने लगते थे। वे भक्ति, शक्ति और विरक्ति के समुच्चय हैं।
आज भारतीय राजनीति को एक नहीं अनेक ऐसे व्यक्तित्व की महती आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान भारतीय राजनीति संकीर्णता की मकड़जाल में भौंड़े की फंसी हुई है। लोगों के सामने से देश गायब होता जा रहा है। अतः सबकी एक ही इच्छा है अटलजी बिस्तर से उठे और सबसे कहें- ‘‘चलो उतारें भारत मां की आरती।’’
Contact us : hindustanvichar@yahoo.in
Comments
Post a Comment