महात्मागांधी धर्म को पालन करने वाले महान व्यक्ति थे - वेन. सामधोंग रिनपोचे
महात्मागांधी धर्म को पालन करने वाले महान व्यक्ति थे -वेन. सामधोंग रिनपोचे
तीन
दिवसीय अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का समापन
भोपाल 3 मार्च। धर्म और
धम्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। संस्कृत और पाली के शब्दों से मिलकर बने इस दो
शब्दों के भीतर गहन मतलब छिपा है। गांधी जी ने धर्म के पथ पर चलते हुए उसको अपने
जीवन में उतारा। ये बातें सांची विश्वविद्यालय के चांसलर ने आज
अन्तरराष्ट्रीय धर्म धम्म सम्मेलन ने कही। उन्होंने इस कार्यक्रम में आए हुए सभी
प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया। समापन समारोह में आगे बोलते हुए जेएनयू में स्पेशल
सेंटर फॉर संस्कृत स्टडीज की चेयरपर्सन शशि प्रभा कुमारी ने कहा कि आयोजन को सफल
बताते हुए आगे भी ऐसे आयोजनों को प्रोत्साहन देते रहने की बात कही।
इससे पहले आयोजन के
अंतिम दिन प्रथम सत्र में नेपाल के लुम्बनी विश्वविद्यालय से आए प्रोफेसर त्री रत्न
मनाधर ने कहाकि इससे पहले नेपाल बौद्ध धर्म के विचारकों का जमावड़ा बन चुका है।
यहां वैश्विक शांति के लिए लगातार बौद्धिक चर्चाएं होती रहता है और धर्म के मार्ग
से लोगों को शांति के राह पर चलने को प्रेरित करता है। भारत में सांची
विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस आयोजन से वैश्विक शांति के क्षेत्र में किए जा रहे
कार्य को एक नई दिशा मिलेगी। उन्होंने बौद्ध धर्म को समझाते हुए इसकी वृहत्तता और
इसके भीतर मानवीय मूल्यों को दी जाने वाली महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि नेपाल
के राजा ने बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म का एक अंग माना था। तथा पुरातन काल से ही
बौद्ध धर्म नेपाल में फल-फूलने के साथ लोगों का कल्याण कर रहा है।
इस
सत्र में वक्ता के रूप में बोलते हुए म्यामार से आए परियत्ती ससाना विश्वविद्यालय
के रेक्टर श्री वेन एडीकावंसा ने पाली धर्म के बारे में वहा मौजूद लोगों को बताया।
इस सत्र में महाराष्ट्र के विपासना शोध संस्थान से प्रो. अंगराज भी उपस्थित थे।
श्री चौधरी ने अपने अभिभाषण में भगवान बुद्ध के द्वारा शांति के लिए शुरू किए
प्रयोग 'विपासना' को समझाया। इस विधि
से मनुष्य के अंदर की उथल-पुथल तथा परेशानियों को दूर किया जा सकता है। उन्होंने
कहा कि विपासना के माध्यम से पाली धर्म को भी समझा जा सकता है। आइआइटी मुंबई के मानवता एवं समाजशास्त्र के प्रो.
के सुब्रहम्यम ने भगवान कृष्ण, चाणक्य और गांधी के जीवन को बौद्ध धर्म के
सिद्धांतों से जोड़ते हुए इस धर्म की महानता को समझाया। उन्होंने बौद्ध धर्म को
मानवता से जुड़ा बताते हुए शांति और आनंद को पानेके लिए अचूक बताया। अंतिम दिन के
पहले सत्र की अध्यक्षता बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शनशात्र विभाग के पूर्व
विभागाध्यक्ष प्रो. एल एन शर्मा कर रहे थे।
इस आयोजन के अंतिम दिन के दूसरे सत्र में
दक्षिण कोरिया से आए प्रो. जियो त्यांग ली ने अपने व्याख्यान में भारत सहित कई
अन्य देशों की पौराणिक चिकित्सा पद्धति का बखान किया। भारत, चीन, कोरिया सहित कई
देशों में चल रही चिकित्सा की नई प्रणाली के बारे में समझाया। उन्होंने बताया कि
कोरिया में पौराणिक चिकित्सा पद्धति को नए चिकित्सा पद्धति की सहायता से मरीज पर
दोनों का साथ-साथ प्रयोग किया जाता है। कोरिया में 5 हजार साल पुरानी अपनी
चिकित्सा पद्धति है। इसके परणाम काफी सफल
रहे हैं। श्री लॉथे ने भारतीय चिकित्सा पद्धति विशेषकर योग को बीमारियों को समूल
समाप्त करने में अचूक हथियार माना। उनके अनुसार योग चिकित्सा तथा बीमारियों से
बचने की सबसे पुरातन तथा कारगर पद्धति है। इसी सत्र में नोर्वे बुद्धिस्ट फेडरेशन
के प्रसिडेंट डॉ. इजिल लॉथे ने समाज में चल रहे कलह और अशांति के कारणों को बताते
हुए इसके समाधान के लिए उपायों पर चर्चा की। उन्होंने व्यक्ति को समस्याओं से
किनारा न करते हुए उसका हिस्सा बनकर समाधान का कारण बनने के लिए प्रेरित करने की
बात कही। धर्म व्यक्ति को सदमार्ग दिखाता है जिसपर चलकर ही सबका कल्याण हो सकता
है। अपने वकतव्य में उन्होंने पंचतंत्र हितोपदेश को एक बेहतरीन ग्रंथ बताया। साथ
ही धर्म में दंड के प्रवधान पर चर्चा करते हुए समाजिक बुराइयों को समाप्त करने के
उपाय सुझाए। दूसरे सत्र के अंत में गीतम विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. रामकृष्ण राम
ने महात्मा गांधी के जीवन की घटनाओं और उनके द्वारा सुझाए गए रास्तों को एक धर्म
की तरह माना और गांधी के धर्म पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि गांधी जी जीवनभर
अपने रास्तों पर चलकर पहले उसका परिक्षण करते थे फिर उसके परिणामों के अनुसार उसका
अनुशरण करते थे। गांधी जी की बातों में सदैव बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म का समावेश
होता था। श्री रामाकृष्ण राम ने आगे कहा कि गांधी जी ने जीवन में सत्य अहिंसा और
प्रेम के मार्ग पर चले और लोगों को भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने कहा कि अभिमान का जीवन में कोई महत्व नहीं है और धर्म के रास्ते पर चलने
के लिए मन से अभिमान को निकालना ही होगा। गांधी के सत्याग्रह को समझाते हुए श्री
राम ने कहा कि सत्य, अहिंसा और प्रेम के साथ आत्मा की शक्ति से किसी को भी मनाया
जा सकता है। उन्होंने आर्थिक विकास के लिए गांधी के सिद्धांतों को भी समझाया।
कार्यक्रम
के अंतिम दिन अंतिम सत्र में वियतनाम के बुद्धिस्ट रिसर्च संस्थान से आए वेन थिक
टैम डक ने अपने वकतव्य के साथ लोगों से मुखातिब हुए। उन्होंने भगवान बुद्ध के लोटस रिविल्स की
बारिकियों को समझाया। उन्होंने कहा कि इस पद्धति के तहत चित्रों, रेखाचित्रों की
मदद से लोगों के भीतर की उत्कंठा, भय आदि को दूर किया जाता है। इसके माध्यम से
मानव को असीम आनंद की अनुभूति होती है। इस पद्धति के द्वारा अंतरिक्ष के पिंडों से
आ रही उर्जा को संग्रहित कर लोगों के मन में प्रकाश का पुंज भरा जा सकता है। सत्र
के अगले वक्ता के रुप में सुकोमल बरुआ ने लोगों को बौद्ध धर्म के बारे में बताया।
श्री बरुआ बंगलादेश में ढाका विश्वविद्यालय के संस्कृत और पाली विभाग के प्रमुख
हैं। उन्होंने बंगलादेश को सभी धर्मों के लोगों के निवास करने के लिए अनुकुल स्थान
बताया। धर्म के बारे में अपने विचार रखते हुए श्री बरुआ ने धर्म को समाज कोराह
बताने वाला कहा। एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए धर्म की आवश्यकता को बताते हुए
मानवता के लिए धर्म मनुष्य में अच्छे विचार भरकर उसमें मानवीय मूल्यों की समझ
विकसित करता है। बौध धर्म के बारे में बताते हुए श्री बरुआ ने इसे भेद-भाव को दूर
करने वाला धर्म बताया। उन्होंने अपने व्याख्यान के अंत में सांची विश्वविद्यालय क
प्रगति और समाज में इसके अधिक से अधिक योगदान की कामना करते हुए शुभकामनाएं दी। समारोह
के अंतिम सत्र के अंत में अमेरिकाके ब्रांडेइस विश्वविद्यालय में चाइनीज भाषा प्रोग्राम के डायरेक्टर फेंग
यू ने अपना वकतव्य दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म में 'GAYE' सिद्धांत को
समझाया। चीन में बौद्ध धर्म के विकास को समझाते बताते हुए उन्होंने इसे शांतिपूर्ण
ढ़ंग से प्रचारित होने वाला धर्म बताया। उन्होंने बौद्ध धर्म को संकीर्ण सोचसे उपर
उठकर वृहत विचारों वाला बताया।
इस आयोजन के अंत में विभिन्न
विषयों पर कुछ समानांतर सत्रों का आयोजन किया गया। इस
सत्र में 20 शोधार्थियों ने अगल अलग विषयों पर अपने शोधों की प्रस्तुति देते हुए
अपने निष्कषों पर लोगों के सवालों के जवाब दिए। डॉ रजिता पी कुमार ने धर्म को लेकर
बताया कि यह मानवीय ज्ञान, दक्षता और व्यवहार को सुदृढ़ करता है। मानव समाज में
बड़े बदलाव के लिए धर्म धम्म की आवश्यकता बनी हुई है।
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