नये सिक्कों कें चलन से नाराज हैं भोपाल के सोनार
जब से रिजार्व बैंक ने पुराने सिक्कें के आकार और गुणवत्ता में सुधार किया हैं तब से मध्यप्रदेश राज्य के कई सोनार एंव ज्वैलरी शॉप मालिक इन भारतीय मुद्रा के सिक्के के नये आकार से नाराज हैं वैसे देखा जाये तो अधिकतर परिवर्तन अच्छे के लिए ही किये जाते हैं और इस बात को ध्यान मे रखते हुऐ हमने हिन्दुस्तान विचार पत्रिका के माध्यम से कुछ सुनारो से ये जानने की कोशिश की, कि ये लोग सिक्कों में परिवर्तन से आखिर क्यों नाखुश हैं तो काफी तहकीकात करने के बाद हमें यह पता चला कि म.प्र. के भोपाल शहर में तो सन् 1997 से पहले के निर्मित भारतीय मुद्रा के एक रुपये के सिक्कें की कीमत दो रुपये हैं। जी हाँ आप ही की तरह यह जानकर हम भी हैरत में पड़ गये थें, भोपाल के कई सुनारे हमसे भी सन् 1985 का निर्मित एक रुपये के सिक्के को दो रुपये में खरीदने को तैयार हो गये और सन् 1998 के दो रुपये के सिक्कें को तीन रुपये में खरीदने को तैयार हो गये, पाँच रुपये के पुराने सिक्कें को सात रुपये में खरीदने को और तो और पाँच पैसे, बीस पैसे, पच्चीस पैसे, आठअन्ने के सिक्को को भी एक से तीन रुपये तक खरीदने को तैयार हो गयें। इस तहकीकात में जो सबसे ज्यादा चैकाने वाली बात सामने आई हैं वो यह हैं कि यह सोनारे इन सिक्को को गला देते हैं और इन पुराने भारतीय मुद्रा के सिक्को में जिंक की मात्रा अधिक होने के कारण ये सोनारे इन सिक्को का उपयोग कई प्रकार की अन्य वस्तुओ मे भी मिलाकर करते हैं। यह एक घिनौना कार्य हैं जो कि भारतीय मुद्रा के साथ बड़े ही निडरता से किया जा रहा हैं किसी ने बिलकुल सही कहा हैं ‘‘मुझे अपनो ने ही लूटा गैरो में कहाँ दम था, मेरी किस्ती भी वही डूबी जहाँ पानी कम था‘‘। भारतीय मुद्रा के साथ यह घिनौना खिलवाड़ करके भारत के पढ़े-लिखे जागरुक नागरिक ही जब भारत को चूना लगाने में लगे हैं, अगर भारत को एक मजबूत और शक्तिशाली देश बनाना हैं तो हमें सबसे पहले अपने अंदर बसे चोर को अपने - अपने तन मन से दूर करना होगा तभी महान भारत बन सकता हैं वो कहते हैं ना ‘‘चैरीटी बिगन्स एट होम‘‘।
बढ़िया जानकारी दी है आपने .... आभार
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( खुद को रम और भगवन को भांग धतुरा ....)
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