कारगिल के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि
कारगिल के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि
अभी हाल ही में पूरे देश ने कारगिल विजय दिवस मनाया और समूचे राष्ट्र ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। कारगिल युद्ध पाकिस्तान के घुसपैठियों के खिलाफ 3 मई 1999 से 14 जुलाई 1999 तक चला, कारगिल की लड़ाई में देश ने अपने 527 जवानों की शहादत दी थी 16 साल पहले जहां कभी तोपें गरजी थीं, गोलियां बरसीं थीं, रॉकेट लांचर दागे गए थे। आज वहां एक अजीब सी खामोशी है जगह है द्रास क्षेत्र का युद्ध स्मारक जहां हर साल 26 जुलाई को कारगिल की जीत का जश्न मनता है। जवान हो या बुजुर्ग हर पीढ़ी के लोग जंग के किस्से जानने यहां पहुंचते हैं, तस्वीरें लेते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। सेना के जवान आने वालों को शहीद साथियों की बहादुरी के किस्से सुनाते हैं। इसके बाद सैलानी तो अपने सफर पर बढ़ जाते हैं, मगर शहीद सिपाही अपने एकांत में यहीं रह जाते हैं, फलक पर लिखा हर नाम शहादत की एक न भूलने वाली दास्तान बयान करता है। कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले जवानों की स्मृति में यहां प्रतिवर्ष सप्ताह भर कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम चलते हैं और सेना प्रमुख शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। कारगिल युद्ध भारतीय सेना के गौरवमयी इतिहास का एक सुनहरा अध्याय है। हमारे वीर जवानों ने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हमें अपने वीर सैनिकों पर गर्व है उनके बलिदान के प्रति पूरा राष्ट्र कृतज्ञ है। हमें और हमारी सरकारों को चाहिए हम कुछ ऐसा करें कि आने वाली पीढियां भी शहीद सैनिकों की शौर्य गाथाएं जानें और जीवन प्रेरणा लें। दिल्ली के मित्र श्री भारतेंदु कुमार ने एक बेहतरीन सुझाव सुझाया है जिसे मानव संसाधन मंत्रालय को गंभीरता से लेना चाहिए। क्यों ना कारगिल युद्ध में शहादत देने वाले योद्धाओं की दास्तान स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल की जाए। इससे आने वाली पीढ़ियों को सैनिकों और सेना की पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कुछ पता चलेगा साथ ही ये पाठ्यक्रम युवाओं के राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में भी सहायक सिद्ध होगा। शायद शहीदों के लिए इससे बेहतरीन श्रद्धांजलि कोई हो भी नहीं सकती।
एक ऐसी शहादत जो शायद जंग शुरू होने से पहले दी गई ये कहानी है सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों की। नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम। ये सभी काकसर की बजरंग पोस्ट पर गश्त लगा रहे थे। सौरभ कालिया की उम्र उस वक्त 23 साल थी और अर्जुन राम की महज 18 साल।
कैप्टन सौरव कालिया को महज फौज की सेवा में आए एक महीने हुआ था । गश्त के दौरान ही पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन्हें धर दबोचा। तीन हफ्ते बाद उनके शव क्षत-विक्षत हालत में सेना के पास लौटे। उनकी पहचान तक मुश्किल थी। कैप्टन विक्रम बत्रा एक सुपरहीरो थे इन्होंने अकेले अपनी दम पर पाकिस्तान के कई ठिकानों को ध्वस्त किया और शहादत के वक्त उनके आखिरी शब्द थे..... "जय माता दी "। कैप्टन अनुज नैय्यर और उनके साथी युद्ध में सबसे ऊंची घाटी को अपने कब्जे में लेने निकले थे, पाकिस्तानी रॉकेट लांचर उनके शरीर को भेद गया था फिर भी कैप्टन ने आखिरी सांस लेने से पहले अपना लक्ष्य पूरा किया। रोंगटे खड़े कर देने वाली और रोमांच पैदा करने वाली ये शहीदों की दास्तानें निश्चित ही देश की आने वाली नस्लों में राष्ट्रभक्ति का ज्वार भर देंगी साथ ही उन्हें एक संवेदनशील जिम्मेदार नागरिक बनाने में सहायक सिद्ध होंगी। कारगिल युद्ध शहीदों की वीरता के ऐसे कई किस्सों से भरा पड़ा है, जरूरत है तो बस भावी पीढ़ी को उनसे वाकिफ कराने की।साभार। लेखक : कल्पेश ठाकुर
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