हँगामा है क्यों बरपा ----- ?
लेखक -
अजय धीर
संपादक
संवाद ब्यूरो (समाचार पत्र)
हँगामा है क्यों बरपा ----- ?
भोपाल या भोजपाल
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने राजा भोज के राज्यरोहण सहस्त्राब्दी समारोह का भोपाल मे आयोजन कर भोपाल के नाम को भोजपाल करने की घोषणा क्या की के एक हँगामा खड़ा हो गया, सच तो यही है की दो गुटो मे बँट गये भोपाल के रहवासी और नाम परिवर्तन पर शुरू हो गई राजनिति वैसे देखा जाये तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का तर्क सही ही लगता है की भोपाल शहर का नाम पराक्रमी राजा और उच्च कोटी के विद्वान राजा भोज के नाम पर भोजपाल होना चाहिए। भोपाल के बड़े तलाब के किनारे परमार राजा भोज की प्रतिमा के अनावरण के साथ ही मुख्यमंत्री ने घोषणा की भोपाल का नाम अब भोजपाल होगा जिसका प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जायेगा और बड़ा तलाब अब भोजताल और वी.आई.पी रोड का नाम अब भोज मार्ग होगा वैसे इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि राजा भोज उच्च कोटी के विद्वान और पराक्रमी राजा थे अतः अगर भोपाल का नाम भोजपाल हो जायेगा तो इसमे किसी भी पक्ष को आपत्ति नही होनी चाहिए क्योंकी वैसे भी भोपाल शब्द का कोई अर्थ नही है इतिहास मे मिले प्रमाणो के अनुसार भी सन् 1718 मे भोपाल का नाम देवल भोजनगरी ही था जबकि दूसरी और कुछ कांग्रेस नेताओ का कहना है की भोपाल का नाम बदलने का कोई ठोस कारण नही है जबकि सही तो यही है कांग्रेस का विरोध करने का कोई कारण समझ मे नही आता है अभी तो भोपाल का नाम भोजपाल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया है जिसका अंतिम निणर्य केन्द्र सरकार को लेना हैं इससे पूर्व मे भी भोपाल विशव् विघालय का नाम परिवर्तित कर कांग्रेस सरकार के समय मे बरकतउल्ला विश्व्यविघालय किया जा चुका है निष्कर्ष यही है कि शहरो या विश्व्यविघालय के नाम विद्वानो के नाम पर रखने पर किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए।
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