यह क्या बोल गए शिवराज
यह क्या बोल गए शिवराज
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राज्य सभा अंग्रजो की देन हैं। इसका कोई औचित्य नही। मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चैहान ने राज्य सभा खत्म करने का एक नया मुद्धा उठा कर राज्य सभा के अस्तित्व पर प्रशन चिन्ह लगा दिया है इससे मुझे अपने बचपन का वो खेल याद आ गया जो हम बचपन मे खेला करते थे।
मेरा बचपन ग्रामीण क्षेत्रो और घनी बस्तियो में बीता हैं मुझे उस समय की याद आती हैं जब हम बच्चें थें और बचपन में कई प्रकार के खेल खेला करते थें बच्चों का एक समूह जिसमें हमउम्र लड़के लड़कियाँ दोनो होते थे मिलकर छुपन छुपीया या घर गृहस्थी को चलाने शादी विवाह करने, भगवान की पूजा करने आदि ऐसे कार्या को खेल का अंग बना लेते थे जो अब वास्तविक जीवन में हम करते हैं जब बच्चे यह खेल खेलते थे तो कई बार वे मर्यादा भूल जाते थे और बड़े उनको देखते थे तो या तो वे इस बात का हँसी में या नादान बच्चे ऐसा कहकर छोड़ देते थे लेकिन अब वास्तविक जीवन में ये नादनियाँ आगे चलकर विकराल रुप ले लेती हैं चूकी बचपन में खेले गये खेल व्यस्क जीवन में खेल न होकर वास्तविकता बन जाती हैं क्योकी बचपन में खेले गये खेलो में जब अमर्यादित कार्य करने से बड़े उनको नही टोकते तो बच्चो का साहस बढ़ता जाता हैं और उनका मन ऐसे कार्या को और अधिक करने को करता हैं और ये कार्य ऐसे होते हैं कि मानसिक चितंन की जरुरत नही होती मष्तिष्क पर भार नही पड़ता, खेल के परिणाम क्या होगे इसकी चिंता नही रहती यही स्थिति आजकल हमें मध्यप्रदेश में देखने को मिल रही हैं वो भी इस तरह की आओ सी-एम- - सी-एम- खेले इस खेल मे हम अपने आपको सी-एम- बना लेते हैं कुछ लोगो को मंत्री बना लेते हैं कुछ लोग ब्यूरोकेट हो जाते हैं और जा बचते हैं वह जनता होती हैं खेल खेल में सी-एम- कुछ ऐसे बचकाने काम करते हैं जिसे देख जनता के रुप में बच्चे ताली बजाने लगते हैं और सी-एम- को लगता हैं कि उन्होंने अच्छा कार्य किया हैं जबकि हकीकत इस खेल के बाहर के लोग देखते हैं तो उनको हँसी आती है वे जानते हैं कि हँसी सी-एम- की बचकानी नादानी के लिए हैं जो कुछ पल के लिए अपनी संवैधानिक मर्यादाओ को भी भूल जाते हैं कभी कहते हैं राज्यसभा की आवशयकता नही हैं कभी कहते हैं राज्यसभा क्यों हैं ? तो कभी प्रधान मंत्री के सीधे चुनाव की बात करते हैं। वैसे राष्ट्रपति का चुनाव तो कई देशो में सीधे होता हैं पर प्रधान मंत्री का चुनाव किस देश में सीधे होता हैं हमें इसका ज्ञान नही हैं इसकी जानकारी लेनी होगी सी-एम- बने हम ऐसी मनगढ़त बाते जनता के बीच कर देते हैं जिसे हम पूरा कर नही पाते तब हम बोलते हैं हम खेल खेल रहे हैं और क्षमा माँगने की बहुतप्रचलित पंरपंरा को प्रस्तुत कर देते हैं।
खेल खेल में सी-एम- के रुप में संवैधानिक पद धारण करने के बाबजूद हम धरना आंदोलन में शामिल हो जाते है जबकि सत्ताधारी पार्टी इसे गैरकानूनी कहती है जबकि हम सत्ता में बैठे होते हैं और धरने आंदोलन में सम्मिलित होते हैं ऐसी स्थिति में पुलिस हमारा क्या बिगाड़ सकती हैं क्योंकि पुलिस भी तो हमारे साथ सी-एम- - सी-एम- खेल रही है और इस खेल में हम सी-एम- हैं और जब कलेक्टर हमारे सामने आता है तो हम सोचते हैं कि अगर पढ़ लिख गये होते तो हम भी कलेक्टर बन गये होते लेकिन नही बन पाये तो काई बात नही खेल खेल मे सी-एम- तो बन गये अब हम कलेक्टर से पूर्वग्रह से भरे हुए बात करते हैं उसे डाँटते है जबकि कलेक्टर बेचारा कई तरह के कानूनो में बंधा रहता हैं जो हमारे कहे अनुसार काम करने से पहले कानून भी देखता है और जब वह हमारे कह अनुसार काम नही करता तो उसे हम सार्वजनिक रुप से डाँटते लगते है क्योंकि हम तो सी-एम- - सी-एम- खेल रहे हैं।
अब हम अपनी प्रंशसा से इतने फलिभूत हो जाते है कि ऐसी ऐसी घोषणाएँ कर देते हैं जो बाद में हम पूरा नही कर पाते और घोषणाएँ करते समय न ही हम अपना खजाना देखते हैं क्योकी ताली बजवाने के लिए हम तो दोनो हाथो से पैसा लुटाने की बात करते हैं वही पैसा जो लुटाया जा रहा हैं उसे वापिस खजाने मे लाने के लिए फिर कर लगाना पड़ता है और फिर हम कह देते है कि बड़ी सरकार हमारे साथ भेदभाव कर रही है हमें राज्य चलाने के लिए पैसे नही दे रही क्योंकि हम तो सी-एम- - सी-एम- खेल रहे हैं।
पता नही हम कब तक ऐसे खेल खेलते रहेगे और संवैधानिक मर्यादाओ को छोड़ते रहेगे। प्रदेश के विकास के लिए विषेशकर जो प्रदेश के युवको को स्थाई रोजगार दे सके और कानूनी व्यवस्था को मजबूती दे सकें दिनो दिन बढ़ते अपराधो को नियंत्रित कर सके यह तब तक संभव नही होगा जब तक हम सी-एम- - सी-एम- खेलते रहेगे।
अजय धीर
स्वतंत्र पत्रकार
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